________________
१४८
सन्मति महावीर
-जब तक वुढापा नहीं सताता, जब तक व्याधियाँ नहीं बढती, जब तक इन्द्रियॉ हीन-अशक्त नहीं होती; तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिए। २५.-उपलेवो होइ भोगेस, अभोगी नोवलिप्पइ। . भोगी भमइ ससारे, अभोगी विष्पमुच्चई ॥
-उत्तराध्ययन २५/२१ -जो मनुष्य भोगी है-भोगासक्त है, वही कर्म-मल से लिप्त होता है, अभोगो लिप्त नहीं होता । भोगी संसार मे भ्रमण किया करता है और अभोगो संसार-बन्धन से मुक्त हो जाता है। २६-अधुव जीवियं नच्चा, सिद्धिमन्ग चियाणिया । विरिणाद्देज भोगेसु, आउँ परिमिअमप्पणो ।
-दशथै ८/३४ मानव-जीवन नश्वर है, उसमे भी आयु तो परिमित है, एक मोक्ष-मार्ग ही अविचल है, यह जानकर काम-भोगो से निवृत्त हो जाना चाहिए।