Book Title: Sanmati Mahavira
Author(s): Sureshmuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 28
________________ ७६. सन्मति-महाबोर शील, दया-निष्ठ, सेवा प्रवण और सुखो मानवात्माएं पलती है। वही मानव सब से ऊँचा है, जो अपने जीवन के सम्पूर्ण कर्तव्यो एव दायित्वो को यथावत् पूरा करता है।" कान्तदर्शी महावीर के जीवन की सुलगती हुई चिनगारी आज भी दानवी हिंसा, सामाजिक विपमता, अन्याय, अत्याचार शोपण, उत्पीडन और अमानवो दुश्चक्रो के नग्न ताण्डव को भस्मसात् करने के लिए हमे सजीव प्रेरणा दे रही है। आवश्यकता है, केवल दृष्टि के धुधलेपन को साफ करके निर्मल दृष्टि से देखने को । उनका जीवन श्रवण करने या अध्ययन करने की चीज नहीं, प्रत्युत उनके उच्चादर्शों के महाप्रकाश से प्रेरणा, स्कृति एव चेतना की जलती हुई चिनगारी लेकर जीवन मे विराट रूप देने के लिए है।

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