Book Title: Sanmati Mahavira
Author(s): Sureshmuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 43
________________ १३८ : सन्मति महावीर हो । जहाँ तक मै पहुँच सका हूँ, वहीं तक तुम भी पहुँच सकते हो । वीर बन सकते हो, महावीर बन सकते हो, जिन बन सकते हो । क्योकि प्रत्येक श्रात्मा मे जिनांकुर छुपा हुआ है ।" मनुष्यता के लिए इससे बढ़ कर श्राशा का सन्देश आज तक नहीं मिला ।

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