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आत्मावलम्बन की ओर
महावीर की साधना 'अपने बल-बूते और आत्मावलम्बन के संबल पर चलती थी। अपने साधना-काल में उन पर एक-से-एक भयंकर श्रापत्तियों का कुचक्र चलता रहा। एक के बाद दूसरा तूफानों का झंझावात उन्हें झकझोरता रहा। उपसगों का बवडर अपनी भयावनी तस्वीर लेकर साधना-पथ में रोड़े अटकाता रहा। पर मजाल, महावीर ने किसी भी क्षण सहायता के लिए दायें-वायें प्रांख उठाकर भी देखा हो! स्वयं सहायता मांगना तो दूर, भक्ति-भाव से सेवा मे प्रस्तुत होने वालों की भी बात तक न सुनी। वस्तुतः महावीर का यह प्रात्मावलम्वन भादर्श और यथार्थ की सर्वोच्चता का एक सजीव रूप था। ।