Book Title: Sanmati Mahavira
Author(s): Sureshmuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 15
________________ मानवता को एक झलक' ३७ "भगवन् ! क्या निवेदन करूं ? आप ज्ञानी हैं, मेरी स्थिति आपसे छिपी नहीं है। जन्मतः दरिद्र हूँ, भाग्य का मारा हुआ हूँ। कभी सुख से दो रोटी भी पेट को नसीब नहीं हुई । और अब तो ऐसी दशा है कि घर मे अन्न का दाना तक नहीं । परिवार भूखों मर रहा है। अब यह डूबती नैया बचा लेना, आप ही के हाथ मे है।" महावीर ध्यान में थे। "दीनबन्धो ! मौन कैसे है ? ऐसे कैसे काम चलेगा? क्या अनन्त क्षीरसागर के तट से भी प्यासा ही लौटना पडेगा? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। मुझ दीन पर तो कृपा करनी ही पड़ेगी।" महावीर ध्यान में थे। ब्राह्मण के धीरज का धागा टूट चला। उसकी आँखो से आँसुओ की अविरल धार उमड़ चली। वह गिड़गिड़ाकर महावीर के चरणों से चिपट गया। ___ महावीर आत्म-ध्यान में लीन थे। वे अखण्ड चिन्तनधारा में बहे जा रहे थे। परन्तु, अन्तहदय से करुणा का अदम्य स्रोत उमड़ पड़ा। वे ध्यान खोलकर बोल उठे:___ "भद्र ! यह क्या करते हो ? अधीर मत बनो। शान्ति रखो। जीवन के ये झमेले यों हो पाते-जाते रहते हैं। इनके कारण कातर होना उचित नहीं।" "भगवन् ! क्या करूँ ? जीवन भार मालूम हो रहा है। घर

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