Book Title: Sankshipta Prakrit Shabda Roopmala
Author(s): Chandrodayvijay
Publisher: Zaverchand Ramaji Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीस्तम्भनाधिपतिपार्श्वपरमात्माने नमः । सूरिसम्राट् जगद्वन्ध-विजयनेमिसूरिराट् ।
राजते राजतेजोभी-राजमानो रसातले ॥ प्रपूज्यपादश्रीनेमि-विज्ञान-कस्तूरचरणाब्ज-चञ्चरीकमुनि
चन्द्रोदयविजयसङ्कलिता संक्षिप्तप्राकृतशब्दरूपमाला।
पणमिअ पहुं वीरं, सबभावप्पभासगं । नेमिमूरि गुरुं पुजं, किजइ रूवमालिगा ॥१॥
जिणो मुणी गुरू कत्तू , कत्तारो पिअरो पिऊ । अप्पाणो अप्प रायाणो, राओ नरंमि जाणए ।।२।।
(१) अकारान्तपुल्लिंग 'जिण' (जिन) शब्दः । एकवचन.
बहुवचन. पढमा- जिणो. [जिणे] जिणा. धोआ- जिणं.
जिणा, जिणे. तइआ- जिणेण, जिणेणं. जिणेहि, जिणेहिं, जिणेहिं. 1 [] मावा सभा माघेसां आप प्राकृत आरावा.
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 127