Book Title: Sankshipta Prakrit Shabda Roopmala
Author(s): Chandrodayvijay
Publisher: Zaverchand Ramaji Shah

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Page 102
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संक्षिप्तप्राकृतधातुरूपमालायां ॥ [४१ प्रेरके भूतकालस्य रूपाणि । सर्ववचन-सर्वपुरुषेषु होअ- होअसी, होअही, होअहीअ. होए- होएसी, होएही, होएही. होआव- होआवसी, होआवही, होआवहीअ. होआवे-होआवेसी, होआवेही, होआवेहीअ. आर्षरूपाणि। होअ- होइत्था, होइंसु. होए- होएइत्था, होपसु. होआव- होआवित्था, होआविसु. होआवे होआवेइत्था, होआवेइंसु. बहुवचन. प्रेरके भविष्यत्कालरूपाणि । एकवचन. त. पु. होअ- होइहिइ, होइहिए, होइहिन्ति-न्ते, होइहिरे. होएहिइ, होएहिए, होएहिन्ति-न्ते, होएहिरे. [होइस्सइ, होइस्सए, [होइस्सन्ति, होइस्सन्ते, होएस्सइ, होएस्सए.] होएस्सन्ति, होएस्सन्ते.] होए- होपहिइ, होएहिए. होपहिन्ति-स्ते, होएहिरे. [ होएस्सइ, होएस्सए.] [होएस्सन्ति, होएस्सन्ते.] होआव- होआविहिइ,होआविहिए, होआविहिन्ति-न्ते, होआविहिरे. For Private And Personal Use Only

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