Book Title: Sankshipta Prakrit Shabda Roopmala
Author(s): Chandrodayvijay
Publisher: Zaverchand Ramaji Shah

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Page 125
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४] प्रेरके भावकर्मरूपाणि ॥ नपुंसकलिङ्गे होआवि- होआविन्तं. होआविन्ताई. होआविमाणं, होआविमाणाई. हो- होन्तं हुन्तं. होन्ताई, हुन्ताई. होमाणं, होमाणाई. इति-संक्षिप्त-प्राकृतधातुरूपमाला समाप्ता पसत्थी सुरासुरनरिंदेहिं बंदिअपायपंकओ । सिरिवीरजिणो देउ वंछियत्थं च पाणिणो ॥१॥ गोयमाइगणिंदा य लद्धिरयणसागरा । सुयलद्धिं दिसंतु मे संजाया वीरसासणे ॥२॥ संपइ नेमिसूरिंदो तवगच्छदिवायरो । जुगप्पहाणतुल्लो सं देउ सूरीससेहरो ॥३॥ तह विनाणसूरीसो मईयपरमो गुरू । गुरू कत्थूरसूरी अ ; पसीयंतु सया मइ ॥४॥ जेसिं सुहपसायाओ रइआ रूवसुंदरा । .. मुणिचंद्रोदएणेसा संखितरूवमालिगा ॥५॥ वेयखसुन्ननेत्तक्खे विकमवरिसे मए । जइणं सासणं जाव एसा जयउ पुत्थिआ ॥६॥ जुम्मं. जुम्मं । For Private And Personal Use Only

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