Book Title: Sankshipta Prakrit Shabda Roopmala
Author(s): Chandrodayvijay
Publisher: Zaverchand Ramaji Shah

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संक्षिप्तप्राकृत स. - जाअ, जाइ, जाए, जासु, जासुं, जीअ, जीआ,जीइ, जीए. जीसु, जीसुं. 'ज' (यत्) शब्दस्य नपुंसकलिङ्गरूपाणि । एकवचन. बहुवचन. प. बी. जं. जाई, जाइँ, जाणि. शेषं पुलिंगवत्. (४) क (किम्) शब्दस्य पुल्लिंगरूपाणि । एकवचन. बहुवचन. प.-- को, [के.] श्री. -- कं. के, का. त.- केण, केणं, किणा. केहि, केहि, केहिं. च. छ. कास, कस्स. कास, केसि, काण, काणं. पं.- किणो, कीस, कम्हा, कत्तो, काओ, काउ, काहि, कत्तो, काओ, काउ, काहिन्तो, कासुन्तो. काहि, काहिन्तो, का. केहि, केहिन्तो, केसुन्तो. स.-- कस्सि , कश्मि, कत्थ, केसु, केसं. कहि, [कसि], xकाहे, काला, कइआ. દે આદિ ત્રણે ર ‘કયારે અથવા કયે વખતે' તેવા અર્થમાં વપરાય છે. For Private And Personal Use Only

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