Book Title: Sankshipta Prakrit Shabda Roopmala
Author(s): Chandrodayvijay
Publisher: Zaverchand Ramaji Shah

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीशंखेश्वरपार्श्वपरमात्मने नमः । सूरिसम्राट् जगद्वन्ध-विजयनेमिसूरिराट् । राजते राजतेजोभी-राजमानो धरातले ॥ प्रपूज्यपादश्रीनेमि-विज्ञान-कस्तूरचरणाज-चञ्चरीकमुनि चन्द्रोदयविजयसङ्कलिता संक्षिप्तप्राकृतधातुरूपमाला। वद्धमागजिणो सामी सिद्धत्थकुलनंदणो । संसिद्धत्थपयं दिज्जा अक्खयानंददायगं ॥१॥ विजयनेमिसूरीसे वीसविक्खायकित्तिणो । गुरू विन्नाण-कत्थूर-सूरिणो नमिऊण य ॥२॥ हस-हो-हो-होजाणं होएज्जा धाउणो तहा । रूवमाला य सव्वंमि कालंमि लिक्खए मए ॥३॥ 'हम्' (हस्) धातोर्वर्तमानकालस्य रूपाणि । एकवचन. बहुवचन. तइयापरिस. हसइ, हसन्ति, हसन्ते, हसिरे, हसेन्ति, हसेन्ते, हसेइरे, हसए. हसिन्ति, हसिन्ते, हसइरे. हसेइ, For Private And Personal Use Only

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