Book Title: Sankshipta Prakrit Shabda Roopmala
Author(s): Chandrodayvijay
Publisher: Zaverchand Ramaji Shah

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्दरूपमाला ॥ [१७ नाणं दहिं महुँ कत्तु सेयं दाम नहं सिर । *चक्र च धणुहं एए पन्नत्ता य नपुंसगे ॥४॥ (१) अकारान्तनपुंसकलिंग 'नाण' (ज्ञान) शब्दः । एकवचन. बहुवचन. पटमा- नाणं. नाणाइँ, नाणाई, नाणाणि. वीआ- नाणं. नाणाई, नाणाई, नाणाणि. तइआ- नाणेण, नाणेणं. नाणेहि, नागेहिँ, नाणेहिं. शप 'जिण' शब्दवत्. स्बोहण- हे नाण. नाणाइँ, नाणाई, नाणाणि. एवम्-धण (धन), वण (वन), पाव (पाप) इत्यादयः । (२) इकारान्तनपुंसकलिंग 'दहि' (दधि) शब्दः । एकवचन. वहुबचन. दहीइँ, दहींई, दहीणि. पढमा-- : दाम (दामन् ), सिर (शिरस), नह (नभस् ) [ A. सिवा५ नान्त-सान्त स पुर्विमा पराय जसो (यशस् ), तमो (तमस् ) वगैरे. नपुंसलिमा ५९ प्रयोग ७. म-सेयं (श्रेयस् ), सम्मं (शर्मन् ), चम्मं (चर्मन् ) वगैरे. x चक्खु-(चक्षुस्) मन ते सथ वासा भी शो सिमा वि १५२ . भ चक्खुणो-चवूई (चक्षूषि, नयणा-नयणाई (नयने) गरे. For Private And Personal Use Only

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