Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak
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अथ श्री संघपट्टका
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MAKA
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नावार्थः-जाग्यशाळी जनोने ज विधिनो योग मळे ने माटे विधिपक्षना सेवनारने हमेशां धन्यवाद देवो घटे. तेमज विधिने बहुनान देनार तथा डेवटे विधिपक्षने दोष नहि देनारने पण धन्यवाद देवो घटित .
श्रा कारणथी आज काळमां पण फरीने प्रमादरुप अंधकारनुं जोर वध्यु डे एटले तेमां प्रकाश आपनार संघपट्टक, संदेहदो'लावळी, तथा षष्टिशतक जेवा ग्रंथोनी टीकाओनां गुजराती जाषांतरो बाहेर पामी लोकोने फरीने जागृतिमां लाववानी जरुर उनी थई .
ते जरूरने पूरी पामवा थोमा वर्षपर विधिमार्गना पक्षनी हिमायतमां तत्पर थएला अने सत्यप्ररुपकरुप पदने धारण करनार मुनिराजश्री बुटेरावजी महाराजना परमजक्त श्रीयुत शांतिसागरजी महाराजे पोताना फूरसदना वखतमां संघपट्टकनी टीकार्नु नाषांतर तैयार कर्यु हतुं. तेज नाषांतर हाल अमे मूल पाठ साथे कायम राखीने जेम रचेवू तेम पाव्युं बे.
श्रा नाषांतरनी भाषा हालनो नापा पडतिने बंधवेस्ती थाय तेवी नथी तेमज तेमां प्रमाण तरीके अपायला पाउनो पण घणा स्थळे संपूर्ण अर्थ श्रापवामां नथी श्राव्यो तथा बीजी पण केटलीक खामी हशे ज केमके तेमनो ए प्रथम प्रयास ज हतो, उतां तेमनी कृतिमां तेमना हृदयनी केवी सरळता अने उच्चता हती ते जेवी स्पष्ट जणाय जे तेवी नाषांतर फेरवी नाख्याथी नहि जणाय ए कारपने अनुसरी अमे तेमां कंश फेरफार नहि करतां, हाल जेम रतुं

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