Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak
View full book text
________________
* अथ श्री संघपट्टका
कसी चैत्यवास तोड्यो तेमना ज वंशजो फरीने शिथिलाचारमा हमणा पाला फसी पड्या बे. ते हाल पोताने गोरजीना नामे उलखावे अने जो के ते चैत्यमां-निवास नथी करता तोपण चैत्यना परखे वांधेदा अपासरारुप मठमां रहीने हाल मठवासी वनेला , तेनमांजे समजुङ बे ते पोताना शिथिलाचारने पोतानो प्रमाद जणावी सत्यमार्गने दूषित नथी करता, पण श्रणसमजु वर्ग एम समजे ले के आ मठवास तो अमारी असल परंपराथी ज चाल्यो आवे दे तो तेवा जनोने सत्य. वात जणाववा खातर आ संघपट्टक तथा तेनी टीकार्नु भाषांतर उपावी प्रसिक करवामां श्रावे .
वळी श्राजकालना वसतिवासि मुनिउँ पण गृहस्थना घरनी वसति नहि शोधतां खास करीने तेमने उतरवा माटे ज बंधावेली धर्मशाळाठमां नतरे ले ए पण एक जातनो तेमनो प्रमाद ज डे. केमके तेमना पूर्वगुरुनए तेम करवा परा अनुज्ञा आपी नथो कारणके एवी धर्मशाळाओ आधार्मिदोषक्षित ने हवे आ समये पूर्वना माफक वनवास के वसतिवास करवो ए अलवत कठण काम बे, तोपण श्रावा ग्रंथो आद्योपांत वांचवाथी एटली असर तो जरुर अशे के समजु मुनिओ पोताना ए प्रमादने पोतानी जूल तरीके ज कबूल राखी खरा वसतिवासना निंदक के सोही नहि थशे. कारण के शास्त्रमा कहेवू डे के.
धन्नाणं विदिजोगो-विहिपकारादगा सया धन्ना, विदिवङमाणी धन्ना-विदिपकअइसगा धन्ना.. १

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 703