Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak
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8 अथ श्री संघपट्टका
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तेमने नघामा पामी तेमने जेटला बने एटला जांखा पामया. श्रा रीते एमणे चैत्यवास खंमन माटे आ संघपट्टक नामे ग्रंथरूपी महेल चपीने ननो कर्यो.
बाद तेमना माटे महा प्रतापी श्रीजिनदत्तसूरि दादा थया, तेमणे विद्याना चमत्कारथी मोटा मोटा श्रावकोने पोताना पक्षमा लश् चैत्यवासिठना चैत्योने अनायतन एटले पेशवाने अयोग्य ठरावी पोताना गुरुए चणेला महेलपर कळशारोपण कर्यु.
जिनदत्तसूरिए घणा रजपूतोने प्रतिबोधी नवा श्रावक कर्या अने ते दादाजी तरीके आज लगण ओळखाय बे. त्यार केमे प्रवखुडिशाळी अने न्यायनिपुण श्रीजिनपत्तिसूरि पेदा थया. तेमणे पूरा जोसथी चैत्यवासिओने खोखरा करवा मांड्या, अने श्रीजिनवजसू रिए रचेला संघपट्टक उपर त्रण हजार श्लोक प्रमाणनी न्यायथी नरपुर मोटी टीका रची, जिनवबनसूरिए चणेला महेलने चुनाथी गेबंध करी तेने अतिशय टकाउ कों; ते उपरांत एमणे चोराशी वादस्थळ करीने पोतानी अथाग बुद्धि जगजाहेर करी .
सदरहु जिनपतिसूरिना प्रतिबोधित नेमिचं नामागारिक नामना पाटणना निवासी श्रावक पण एटला महाविद्वान थया के तेमणे प्राकृत नापामा एकसो साठ गाथानो षष्टिशतक नामे विधिमार्ग उत्तम ग्रंथ रची चैत्यवासिओने दिग्मूढ का आ रीते नेमिचंडनमारिए जिनववनसू रिए चणेला महेलपर धजा फरकतो करी.
बाद सदरहु नेमिचंजमारोना पुत्रे जिनपत्ति सूरि पाले दीक्षा वर जिनेश्वरसूरि नाम धारण कयु. तेमना शिष्ये जिनदत्त सूरिए

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