Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak
View full book text
________________
-
अथ श्री संघपट्टका
(१५)
wwwnow
wwwwwwwwwwww
रचेली संदेहदोलावली नामना ग्रंथजपर टीका रची तेमां चैत्यवासियोना चैत्योने न्याय पुरस्सर अनायतन ठरावी जिनवबन्ने चपेला महेलने फरतो किहो बांध्यो.
आरीते पेहेला जिनेश्वरसूरि के जेओए सं. १ण्ण्व मां चैत्यवासियोने पहेल प्रथम हराव्या त्यारथी मामीने तेमना वंशना आचार्योंए उ सं. १४६६ लगी तेमनो पराजय करवो चालु राख्यो. थाथी करीने मारवाममां सघळा स्थळे तेमनी जनमुळ नखमी गइ अने वसतिवासीश्रोनो विजयको वाग्यो.
श्राणीमेर गुजरातमां तो मुळथी ज तेमनुं जोर कमती हतुं बतां मुनिचंजसूरिए तेमने सऊमरीते जखेमवा मांमया इता अने त्यार केमे पुनमिया गबना आचार्यों उठया, बीजी तरफ आंचळिक नग्या, त्रीजा आगमिक नव्या अने तेमना केमे तथा सोमसुंदरसूरिना शिष्य मुनिसुंदरसूरिए बाकी रहेला चैत्यवासियोने पुरती रीते पायमाल करी श्राखी गुजरात, तथा सौराष्ट्र, अने माळवामां वसतिवासि मुनिओनो विजयनाद वगाड्यो.
श्रा रीते विक्रमनी पंदरमी सदीना श्राखरे चैत्यवासन जोर तूट्यु, अने फरीने वसतिवासियोनी मान्यता वधी. एम वीरपत्नुना निर्वाणथी एक हजार वर्ष वीत्या बाद जोर पर चमेलो चैत्यवास लगन्नग एक हजार वर्ष लगी चालीने पाडो सदंतर बंध पड्यो तेनी हिमायतमां रचायली नियमोनी उपनिषदो गुम थई अने फरीने निर्मथप्रवचन विकाशमान थवा लाग्यो.
परंतु काळनो महिमा विचित्र एटले के जे प्राचार्योए कमर

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 703