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ज्योतिर्मुख १३. मै १. ऋषभ, २. अजित, ३. सम्भव, ४. अभिनन्दन, ५. सुमति,
६. पद्मप्रभु, ७. सुपाव तथा ८. चन्द्रप्रभु को वन्दन करता हूँ।
१४. मै ९. सुविधि (पुष्पदन्त), १०. शीतल, ११. श्रेयांस, १२. वासु
पूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शान्ति को वन्दन करता हूँ।
१५. में १७. कुन्थु, १८. अर, १९. मल्लि, २०. मुनिसुव्रत, २१. नमि,
२२. अरिष्टनेमि, २३. पार्व तथा २४. वर्धमान को वन्दन करता हूँ।
१६. चन्द्र से अधिक निर्मल, सूर्य से अधिक प्रकाश करनेवाले, सागर
की भाँति गम्भीर सिद्ध भगवान् मुझे सिद्धि (मुवित) प्रदान करे।
२. जिनशासनसूत्र
१७. जिसमे लीन होकर जीव अनन्त संसार-सागा'। पार कर जाते
है तथा जो समस्त जीवों के लिए शरणभूत वह जिनशासन चिरकाल तक समृद्ध रहे ।
१८. यह जिनवचन विषयसुख का विरेचन, जरा-मरणरूपी व्याधि का
हरण तथा सब दुःखों का क्षय करनेवाला अमृततुत्य औषध है।
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