Book Title: Saman suttam
Author(s): Kailashchandra Shastri, Nathmalmuni
Publisher: Sarva Seva Sangh Prakashan

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Page 291
________________ २६८ समणसुत्तं नील-लेश्या-तीन अशुभ लेग्याओ में से पर-द्रव्य-आत्मा के अतिरिक्त देह आदि द्वितीय या तीव्रतर (५२८, ५४०) सहित सर्व पदार्थ (५८७) नैगम-नय-संकल्प मात्र के आधार पर गत पर-भाव-आत्मा के शुद्ध स्वभाव के अति पदार्थ को अथवा अनिप्पन्न या अर्ध- रिक्त उसके रागादि सर्व विकारी भाव निष्पन्न पदार्थ को वर्तमान में अवस्थित तथा अन्य सर्व पदार्थो के रूप रम आदि या निप्पन्न कहना (७००-७०३) भाव (१८८-१९१), तत्त्व या वस्तु (विशेष दे० भूत वर्तमान व भावि का युद्ध स्वभाव (५९०) नैगम नय) परमभाव-तत्त्व या वस्तु का शुद्ध स्वभाव नैमित्तिक-निमित्तज्ञानी (२४४) (५९०) नोआगम-निक्षेप-किसी पदार्थ के ज्ञाता परमाणु-सर्व स्कन्धो का मूल कारण, व्यक्ति के कर्म व शरीर को वह पदार्थ केवल एकप्रदेशी, अविभाज्य, सूक्ष्म, कह देना, जैसे मैकेनिक के मृत शरीर पुद्गल द्रव्य (६४३, ६५२) को 'यह मैकेनिक था' ऐसा कहना परमात्मा-अप्ट कर्म से रहित तथा आत्मा के (१४१, ७४४) शुद्ध स्वरूप में अवस्थित अर्हन्त तथा नोकर्म-देह आदि को लेकर जितने कुछ सिद्ध (१७८-१७९) । भी दृष्ट पदार्थ है अथवा उनके कारण- परमार्थ-तत्त्व या वस्तु का शुद्ध स्वभाव भूत सूक्ष्म स्कन्ध है वे सब कर्म निमित्तक (५९०) होने से नोकर्म कहलाते है। परमेष्ठी-मुमुक्षु के लिए परम इष्ट तथा नो-इन्द्रिय-किचित् इन्द्रिय होने के कारण मगलस्वरूप अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, __ मन का नाम । उपाध्याय व साधु (१-२) पंच-१ अजीव, २ अणुव्रत, ३ इन्द्रिय, परलोक-मृत्यु के पश्चात् प्राप्त होनेवाला ४ उदुम्बर फल, ५ गुरु, ६ ज्ञान, अन्य भव (१२७) ७ महाव्रत, ८ समिति, ९ स्थावर जीव पाँच-पाँच है। परसमय-आत्म-स्वभाव के अतिरिक्त अन्य पदार्थो में अथवा अन्य भावो में इप्टापंचेन्द्रिय-स्पर्शनादि पाँचो इन्द्रियोवाले निष्ट की कल्पना करनेवाला मिथ्यादृष्टि मनुष्यादि जीव (६५०) (१९४-१९५), अन्य मत (२३, पण्डित-अप्रमत्त ज्ञानी (१६४-१६५) ७३५), पक्षपात (७२६-७२८) तिमरण-अप्रमत्त ज्ञानियो का सले- टेट आदि सहित आत्मातिरिक्त खनायुक्त मरण (५७०-५७१) जितने भी पर-पदार्थ या पर-भाव है पदस्थ ध्यान-विविध मत्रो की जाप करने उनका ग्रहण या सचय व्यवहार-परिग्रह मे मन का एकाग्र होना (४९७) है, और उन पदार्थो मे इच्छा तथा पद्म-लेश्या-तीन शुभ लेश्याओ मे से द्वितीय ममत्व भाव का ग्रहण निश्चय-परिग्रह या शुभतर (५३४, ५४३) है (सूत्र ११), (३७९) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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