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मोक्ष-मार्ग
२११. सम्यग्दर्शन के विना ज्ञान नहीं होता। ज्ञान के बिना चारित्र ।
नही होता। चारित्रगुण के बिना मोक्ष (कर्मक्षय) नही हो', और मोक्ष के बिना निर्वाण (अनतआनद) नही होता ।
२१२. क्रियाविहीन ज्ञान व्यर्थ है और अज्ञानियों की क्रिया व्यर्थ है।
जैसे पंग व्यक्ति वन में लगी आग को देखते हुए भी भागने में असमर्थ होने से जल मरता है और अन्धा व्यक्ति दौडते हा भी देखने में असमर्थ होने से जल मरता है।
२१३. कहा जाता है कि ज्ञान और क्रिया के सयोग से ही फल :
प्राप्ति होती है, जैसे कि वन मे पग और अन्धे के मिलने पारस्परिक सम्प्रयोग से (वन से निकलकर) दोनों नगर म प्रविष्ट हो जाते है। एक पहिये से रथ नही चलता ।
(आ) निश्चय-रत्नत्रय २१४. जो सब नय-पक्षों से रहित है वही समयसार है, उन्ग
सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञान की संज्ञा प्राप्त होती है।
२१५. साधु को नित्य दर्शन, ज्ञान और चारित्र का पालन कर
चाहिए। निश्चयनय से इन तीनों को आत्मा ही समझना चाहिए । ये तीनों आत्मस्वरूप ही है। अत: निश्चय .. आत्मा का सेवन ही उचित है।
२१६. जो आत्मा इन तीनों से समाहित हो जाता है और अतर '
नहीं करता है और न कुछ छोडता है, उसीको निश्च.. मोक्षमार्ग कहा गया है।
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