Book Title: Saman suttam
Author(s): Kailashchandra Shastri, Nathmalmuni
Publisher: Sarva Seva Sangh Prakashan
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गाथानुक्रमणिका
गाथांक
गायक
हालए उ जुनम्म
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'नो बधदि कम्म
जलयमेव गण रवणलयसंजुत्तो
या पगाम न निसेवियव्वा गगहोनपमनो गगादोणमणुपाओ
गे दोसे य दो पावे रागो य दोमो विय रधियछिद्दसहस्से रूमइ णिदइ अन्न
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बयणोच्चारजकिरिय वयभगका होइ वयममिदिवमायाण वर में आपा दतो वर वयतवेहि मग्गो ववहारणयचरितं ववहारेणुवदिस्पड बवहार'ऽभूयत्यो वसे गुरुकुले निच्च वाहिजरमरणमयरो विज्जदि केवलणाण विणओ मोक्खहार विणओ मासाणे मूल विणओवयार माणस्म विशयाहिया विज्जा वित्तं पसवो य णाइओ विरई अणत्यदडे विरदो सव्वसावज्जे विरया परिग्गहाओ विवत्ती अविणोयस्स विवित्तसेज्जासण विमयकमायविणिग्गह विस्ससणिज्जो माया व वसोवि अप्पमाणो
॥
लद्ध अलद्धपुव्व लक्ष्णं णिहि एक्को लवण व्व सलिलजोए लाउस एरंडफले लाभालाभे सुहे दुक्खे लेस्सासोधी अज्झवसाण लोइयसत्थम्मि वि लोगो अकिट्टिमो खलु लोयाणं ववहार
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४२७
५४५
३०५ ६५१
२९४
३२५
से
१८३
वज्जणमणतगुबरि वज्जिज्जा तेनाहड वण्णरसगंधफासा वण्णरसगंधफास वत्तावत्तपमाए वदसमिदीगुत्तीओ वद-समिदि-सील-सजमवयणमयं पडिकमण
३१३
मकेज याऽसकितभाव ६४४ सग परिजाणामि
सगनिमित्त मारइ १९५ राघो गुणसघाओ
सजोअसिद्धीइ फल वयर्यात ४२२ सजोगमला जोवेण
१४०
४५७
२१३
५१७
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