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आगम के आलोक में - ___ इसमें आचार्य कुन्दकुन्द के प्रवचनसार की चरणानुयोगसूचकचूलिका की शैली की झलक दिखती है।
प्रवचनसार और उसकी तत्त्वप्रदीपिका टीका में दीक्षा लेने के लिये तैयार व्यक्ति अपने परिजन और पुरजनों को किसप्रकार समझावे - इसका नमूना दिया है; जो इसप्रकार है -
“वह बन्धुवर्ग से इसप्रकार पूछता है, विदा लेता है कि अहो! इस पुरुष के शरीर के बन्धुवर्ग में प्रवर्तमान आत्माओ! इस पुरुष का आत्मा किंचित्मात्र भी तुम्हारा नहीं है - इसप्रकार तुम निश्चय से जानो।
इसलिए मैं तुमसे विदा लेता हूँ। जिसे ज्ञानज्योति प्रगट हुई है - ऐसा यह आत्मा आज अपने आत्मारूपी अनादिबन्धुकेपास जा रहा है। ___ अहो! इस पुरुष के शरीर के जनक (पिता) के आत्मा! अहो! इस पुरुष के शरीर की जननी (माता) के आत्मा! इस पुरुष का आत्मा तुम्हारे द्वारा जनित (उत्पन्न) नहीं है - ऐसा तुम निश्चय से जानो। ___ इसलिए तुम इस आत्मा को छोड़ो। जिसे ज्ञानज्योति प्रगट हुई है - ऐसा यह आत्मा आज अपने आत्मारूपी जनक के पास जा रहा है, आत्मारूपी जननी के पास जा रहा है। __ अहो! इस पुरुष के शरीर की रमणी (स्त्री) के आत्मा! तुम इस पुरुष के आत्मा को रमण नहीं कराते - ऐसा तुम निश्चय से जानो। ___इसलिए तुम इस आत्मा को छोड़ो । जिसे ज्ञानज्योति प्रगट हुई है - ऐसा यह आत्मा आज अपनी स्वानुभूतिरूपी अनादि-रमणी के पास जा रहा है। ___ अहो! इस पुरुष के शरीर के पुत्र के आत्मा! तू इस पुरुष के आत्मा का जन्य (उत्पन्न किया गया पुत्र) नहीं है - ऐसा तुम निश्चय से जानो।
इसलिए तुम इस आत्मा को छोड़ो। जिसे ज्ञानज्योति प्रगट हुई है - ऐसा यह आत्मा आज अपने आत्मारूपी अनादि-जन्य (पुत्र) के पास जा रहा है।