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आगम के आलोक में - यद्यपि यह सत्य है कि हमारी अंतरंग क्रियाओं से किसी को कुछ भी लेना-देना नहीं है; तथापि यह भी सत्य ही है कि हमारे आडम्बर किसी को स्वीकार नहीं होते। अतः आडम्बरों से बचना हमारा परम कर्तव्य है।
सम्पूर्ण समाज से हमारा विनम्र निवेदन है कि प्रभावना के नाम पर ऐसी परिस्थितियाँ पैदा न करें; जिससे किसी को हमारे धर्म में हस्तक्षेप करने का मौका मिले। __जिन्होंने इसे महोत्सव कहा है; उन्होंने भी महान मुनिराजों पर आये संकटों की, उपसर्गों की चर्चा करके संकटग्रस्त संल्लेखनाधारियों को ढाँढ़स बंधाया है। अतः वहाँ उत्सव जैसी कोई बात नहीं है। ____ हमने सल्लेखना को कुछ इस रूप में प्रस्तुत कर दिया है कि सल्लेखना एक ऐसी क्रिया है कि जिसमें बहुत कष्ट होता है, बहुत पीड़ा होती है; पर ऐसी बात बिल्कुल नहीं है। तो तेरे जिय कौन कष्ट है, मृत्यु महोत्सव भारी' इस पंक्ति ने जलती आग में घी डालने का काम . किया है। एक भयानक चित्र प्रस्तुत हो गया है।
समाज ने उक्त छन्दों के आधार पर चित्र बनवाकर मन्दिरों में प्रमुख स्थानों पर लगवा दिये । गीत-संगीत वाले भी कहाँ पीछे रहने वाले थे। उन्होंने इन गीतों को संगीत के साथ प्रस्तुत कर समा बाँध दिया। सब एक दिशा में ही बह गये, किसी ने भी यह प्रश्न नहीं उठाया । जो भी हो, पर अब तो इस ओर ध्यान देना ही चाहिये। __उस गीत में जिन मुनिराजों की चर्चा है, वे बस लगभग उतने ही हैं; उनसे करोड़ों गुने मुनिराज ऐसे हैं, जिन्हें कोई कष्ट नहीं होता; क्योंकि सभी मुनिराज अत्यन्त पवित्र हृदय वाले महापुण्यशाली होते हैं, एकाध को कोई एकाध पाप का उदय आ जाता है। सल्लेखना लेनेवाले गृहस्थों की भी यही स्थिति है। किसी को कोई कष्ट नहीं होता।
आखिर, उन्हें कष्ट हो भी क्यों? क्योंकि सभी महान धर्मात्मा और पुण्यशाली होते हैं।