Book Title: Samadhimaran Ya Sallekhana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 53
________________ समाधिमरण या सल्लेखना वे बोले - “कुछ नहीं तो सल्लेखना की तैयारी क्यों?" . मैं सल्लेखना पर एक पुस्तक लिख रहा हूँ; अतः उसमें व्यस्त हूँ। मुझसे प्रायः लोग लेखन के बारे में ही पूँछते हैं; अतः मैंने यही समझा कि यह भी लेखन के बारे में ही पूँछ रहे हैं; पर वे कुछ और ही समझ गये। वे कहने लगे – “मैं तो डर गया था कि ऐसा क्या हो गया कि आप सल्लेखना की तैयारी करने लगे?" क्या सल्लेखना की तैयारी के लिये कुछ होना जरूरी है? क्या स्वस्थ रहते हुये सल्लेखना की तैयारी नहीं की जा सकती? अरे, भाई! सल्लेखना की तैयारी तो स्वस्थ अवस्था में ही होती है। मरण सम्मुख होने पर तो सल्लेखना ली जाती है। मरणसम्मुख होने पर तैयारी को समय ही कहाँ मिलता है? . हमें अपना जीवन समाधिमय बनाना है। ज्ञानियों का जीवन समाधिमय ही होता है, समाधिमय ही होना चाहिये। - जब जीवन समतामय होगा, समाधिमय होगा तो मरण भी सहज समाधिमय होगा। ___ मनुष्य मरते हैं और आत्मा अमर हैं । अब हमें यह निर्णय करना है कि हम मनुष्य हैं या आत्मा? हमारा अपनापन मरणशील मनुष्य पर्याय में है या अमर आत्मा में? यह मनुष्य पर्याय तो कुछ दिनों की है। दो दिन आगे या दो दिन पीछे, आखिर तो इस मनुष्य पर्याय का अन्त होना ही है। एक तो यह आत्मा अनादि से है और अनन्त काल तक रहेगा। अतः इसका अन्त कभी नहीं होता । सदा साथ रहनेवाला यह अनादिअनन्त आत्मा मैं स्वयं हूँ। ___ यदि किसी अपेक्षा असमान जातीय मनुष्य पर्याय को भी अपना कहें तो इसमें अनन्त पुद्गल परमाणु अजीव द्रव्य हैं और एक आत्मा जीव द्रव्य है । तात्पर्य यह है कि अनन्त द्रव्यों की पिण्ड रूप असमान जातीय मनुष्य पर्याय में मेरा (आत्मा का) हिस्सा अनन्तवाँ भाग ही है।

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