Book Title: Samadhimaran Ya Sallekhana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 49
________________ ४७ समाधिमरण या सल्लेखना समाधिमरण और सल्लेखना एकदम व्यक्तिगत चीज है। इसे सामाजिक रूप देना, प्रभावना के नाम पर इसका प्रदर्शन करना, प्रचारप्रसार करना उचित नहीं है। ___ पत्रकारों को बुलाना, रोजाना स्वास्थ्य बुलेटिन निकालना, साधक को जांच यंत्रों में लपेट देना, इन्टरव्यू लेना - ये सबकुछ ठीक नहीं है; अतिशीघ्र इस भव को छोड़ देने की तैयारी करने वालों को इन सबसे क्या प्रयोजन है? आप कह सकते हैं कि ऐसा करने से धर्म की प्रभावना होती है। प्रभावना तो नहीं होती, बल्कि ऐसा वातावरण बनता है कि लोग कहने लगते हैं कि यह तो आत्महत्या है। सरकार भी दबाव बनाने लगती है। यदि कोर्ट ने कुछ कह दिया तो अपने को धर्म संकट खड़ा हो जाता है। ___हमारा जीवन हमारा जीवन है । इसमें किसी का हस्तक्षेप नहीं है, नहीं होना चाहिये । यदि हम शान्ति से चुपचाप कुछ करें तो हमें कोई कुछ नहीं कहता। पर जब हम अपनी किसी क्रिया को, कार्य को; भुनाने की कोशिस करते हैं; तब हजारों अँझटें खड़ी हो जाती हैं। सल्लेखनापूर्वक मरण चुनना हमारा मूलभूत अधिकार है। आप कह सकते हैं कि जीना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, मरना नहीं। सल्लेखना में हम मरण के लिये प्रयास नहीं करते; अपितु अंतिम साँस तक जीने का ही प्रयास करते हैं; किन्तु जब मरण अनिवार्य हो जाता है, तब क्या हम शान्ति से मर नहीं सकते? शान्ति से जीना और शान्ति से मरना हमारा दायित्व है; जिसे हम समताभावपूर्वक निभाते हैं। इस बात को हम अनेक बार स्पष्ट कर आये हैं कि जब मृत्यु एकदम अनिवार्य हो जावे, बचने का कोई उपाय शेष न रहे, तभी सल्लेखना ग्रहण करें।

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