Book Title: Samadhimaran Ya Sallekhana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 48
________________ ४६ आगम के आलोक में छोड़ना नहीं है। सहज ही छूट जावे तो उसे सहज ज्ञाता-दृष्टा भाव से देखते-जानते रहना है। केवली भगवान के ज्ञान में जो जिस समय होना झलका है, वह हमें बिना नाक-भौं सिकोड़े स्वीकार करना है। यदि हम यह कर सकें तो समझो हमारी सल्लेखना सफल हो गई; क्योंकि वस्तुस्थिति भी यही है और सुख-शांति भी इसी में है। ____ कुछ विचारकों ने इसे महोत्सव कहा है, मृत्यु महोत्सव कहा है; पर इस महोत्सव में कोलाहल नहीं है, भीड़-भाड़ नहीं है। नाच-गाना नहीं है, झाँझ-मजीरा नहीं है, आमोद-प्रमोद नहीं है, खानापीना नहीं है, खाना-खिलाना भी नहीं है। किसी भी प्रकार का हलकापन नहीं है। कषायों का उद्वेग नहीं है, रोना-धोना भी नहीं है। शोक मनाने की बात भी नहीं है । एकदम शान्त-प्रशान्त वातावरण है, वैराग्य भाव है, गंभीरता है, साम्यभाव है। ___यहाँ एक प्रश्न हो सकता है कि आप यह सब क्यों बता रहे हैं। इस बात को तो सभी लोग जानते हैं कि यह एक गंभीर प्रसंग है, इसमें उछलकूद की आवश्यकता नहीं है। बात तो आप ठीक ही कहते हैं; परन्तु कुछ लोग महोत्सव का अर्थ ही विशेषप्रकार की धूमधाम समझते हैं और इस प्रसंग को भी वही रूप देना चाहते हैं। उन्हें तो कुछ भी हो, नाचना-गाना है, जुलूस निकालना है। दीपावली पर भगवान का वियोग हुआ था, सभी जानते हैं; पर जिनको खुशियाँ मनानी हैं, पटाके छोड़ना है, लड्डु खाने हैं; वे तो खुशियाँ मनायेंगे ही, पटाके छोड़ेंगे ही, लड्ड खायेंगे ही। कौन समझाये उन्हें?

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