Book Title: Samadhimaran Ya Sallekhana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 39
________________ समाधिमरण या सल्लेखना यदि एक-एक जन्म की एक-एक बूंद इकट्ठा करें तो अनन्त समुद्र भर जायें। इतने आहार और जल से भी तू तृप्त नहीं हुआ है तो अब रोगजरादि से प्रत्यक्ष मरण निकट आ गया है, अब इस समय में किंचित् आहार-जल से कैसे तृप्ति होगी? इस पर्याय में भी जब से जन्म लिया है, तब से प्रतिदिन ही आहार ग्रहण करता आया है, आहार का लोभी होकर के ही घोर आरंभ किये हैं; आहार के लोभ से ही हिंसा, असत्य, परधन-लालसा, अब्रह्म वपरिग्रह का बहुत संग्रह तथा दुर्ध्यान आदि द्वारा अनेक कुकर्म उपार्जन किये हैं। आहार की गृद्धता से ही दीनवृत्ति से पराधीन हुआ। आहार का लोभी होकर भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार नहीं किया, रात्रि-दिन का विचार नहीं किया, योग्य-अयोग्य का विचार नहीं किया। आहार का लोभी होकर क्रोध, अभिमान, मायाचार, लोभ, याचना भी की। आहार की इच्छा करके अपना बड़ापना-स्वाभिमान नष्ट किया। ____ आहार का लोभी होकर के अनेक रोगों का घोर दुःख सहा, नीचजाति-नीचकुल वालों की सेवा की । आहार का लोभी होकर स्त्री के आधीन रहा, पुत्र के आधीन रहा। आहार का लंपटी निर्लज्ज होता है, आचार-विचार रहित होता है, आपस में कट-कट कर मर जाता है, दुर्वचन सहता है । आहार के लिये ही तिर्यंचगति में परस्पर मार डालते हैं, भक्षण कर लेते हैं। __बहुत कहने से क्या? अब इस पर्याय में मुझे अल्प समय ही रहना है, आयु समाप्त होने को है, इसलिये रसों में गृद्धता छोड़कर, रसना इंद्रिय की लालसा छोड़कर यदि आहार का त्याग करने में उद्यमी नहीं होऊँगा तो व्रत, संयम, धर्म, यश, परलोक - इनको बिगाड़कर कुमरण करके संसार में ही परिभ्रमण करूँगा।

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