Book Title: Samadhimaran Ya Sallekhana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 43
________________ ४१ समाधिमरण या सल्लेखना विषय-कषायों से छूटकर वीतरागता कराने के लिये श्री भगवती आराधना जी शास्त्र में विषय-कषायों का स्वरूप विस्तार से परम निर्ग्रन्थ श्री शिवार्य नाम के आचार्य ने प्रकट दिखाया है। वीतरागता के इच्छुक पुरुषों को ऐसा परम उपकार करनेवाले ग्रन्थ का निरन्तर अभ्यास करना चाहिये। __समाधिमरण के समय में जीव का कल्याण करनेवाला उपदेशरूप अमृत की सहस्त्रधारा रूप होकर वर्षा करता हुआ भगवती आराधना नाम का ग्रन्थ है, उसकी शरण अवश्य ग्रहण करने योग्य है। इसलिये यहाँ पर आराधनामरण (समाधिमरण) के कथन करने का अवसर पाकर भगवती आराधना के अर्थ का अंश लेकर लिख रहे हैं। यहाँ ऐसा विशेष जानना : साधु (मुनियों) पुरुषों को तो रत्नत्रय धर्म की रक्षा करने में सहायक आचार्य आदि का संघ तथा वैयावृत्य करने वाले धर्म का उपदेश देनेवाले निर्यापकों की बड़ी सहायता प्राप्त हो जाती है। इसलिये गृहस्थों को भी धर्मवृद्ध-श्रद्धानी-ज्ञानी साधर्मियों का समागम अवश्य बनाये रखना चाहिये। परन्तु यह पंचमकाल अति विषम है। इसमें तो विषयानुरागियों तथा कषायी जीवों का साथ मिलना सुलभ है; राग-द्वेष-शोक-भय उत्पन्न करानेवाले, आर्तध्यान बढ़ानेवाले, असंयम में प्रवृत्ति करानेवालों का ही साथ बन रहा है। स्त्री, पुत्र, मित्र, बांधव आदि सभी अपने राग-द्वेष विषयकषायों में लगाकर आत्मा को भुला देनेवाले हैं। सभी अपने विषय-कषाय पुष्ट करने के ही इच्छुक हैं। धर्मानुरागी, धर्मात्मा, परोपकारी, वात्सल्यता के धारी, करुणा रस से भीगे पुरुषों का संगम महा उज्वल पुण्य के उदय से मिलता है; तथापि अपने पुरुषार्थ से उत्तम पुरुषों के उपदेश का संगम मिलाना चाहिये। स्नेह और मोह के जाल में उलझानेवाले धर्म रहित स्त्रीपुरुषों का साथ दूर से ही छोड़ देना चाहिये।

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