Book Title: Samadhimaran Ya Sallekhana
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 25
________________ २३ समाधिमरण या सल्लेखना झलकते हैं। दर्पण में स्वच्छ (स्वच्छत्व) शक्ति व्याप्त रहती है वैसे ही मैं स्वच्छ शक्तिमय हूँ। मेरी स्वच्छ शक्ति में समस्त ज्ञेय पदार्थ स्वयमेव ही झलकते हैं। ऐसी स्वच्छ शक्ति मेरे स्वभाव में विद्यमान है। ___ मनुष्य पर्याय में शुद्धोपयोग का साधक, ज्ञानाभ्यास का साधन और ज्ञान-वैराग्य की वृद्धि आदि अनेक गुणों की प्राप्ति होती है जो कि अन्य पर्याय में दुर्लभ है, किन्तु अपने संयमादि गुण रहते हुए शरीर रहे तो रहो, वह तो ठीक ही है। शरीर से हमारा कोई बैर तो है नहीं। यदि शरीर रहे तो अपने संयमादि गुण निर्विघ्न रूप से रखना और शरीर से ममत्व छोड़ना चाहिए। हमें शरीर के लिए संयमादि गुण कदाचित् भी नहीं खोने हैं। मुझे दोनों ही तरह आनन्द है - शरीर रहेगा तो फिर शुद्धोपयोग की आराधना करूँगा और शरीर नहीं रहेगा तो परलोक में जाकर शुद्धोपयोग की आराधना करूँगा। इसप्रकार दोनों ही स्थिति में मेरे शुद्धोपयोग के सेवन में कोई विघ्न नहीं दिखता है। इसलिए मेरे परिणामों में संक्लेश क्यों उत्पन्न हो ?" पण्डित गुमानीरामजी के गद्य में प्रगट किये गये उक्त विचार, उनके गहरे अध्ययन और अध्यात्म की तीव्रतम रुचि को व्यक्त करते हैं। वे एक गंभीर व्यक्तित्व के धनी महापुरुष थे। पण्डित टोडरमलजी के साथ जो कुछ भी घटित हुआ था, वह सब उन्होंने अपनी आँखों से देखा था। उसका गंभीर प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर पड़ा था। __ उनकी इस कृति को आधार बनाकर पण्डित बुधजनजी ने पद्य में समाधिशतक नाम से एक कृति प्रस्तुत की है। १. मृत्यु महोत्सव, पृष्ठ-७८-७९ १. वही, पृष्ठ-८१-८२ ३. वही, पृष्ठ-८३

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