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समाधान करनेवाले थे स्वयं भगवान महावीर! भगवान ने श्रमणनिग्रंथों को बुलाकर कहाः ‘सिंह अणगार मालुयाकच्छ में रुदन कर रहा है, उसको तुम बुला लाओ।'
सिंह अणगार भगवान के पास आए। भगवान को अश्रुपूर्ण आँखों से देखते खड़े रहे। भगवान ने कहाः
'वत्स सिंह! मेरे भावी अनिष्ट की कल्पना से तू रो पड़ा!' 'हाँ प्रभु!'
'वत्स, यह बात पूर्ण सत्य है कि गोशालक के तपःतेज के पराभव से ६ महीनों में मेरा कालधर्म नहीं होगा | मैं गंधहस्ति के समान जिनरूप में अभी १६ वर्ष, विचरता रहूँगा। सिंह, तुम मेंढियग्राम में रेवती श्राविका के वहाँ जाओ और उसने अपने लिए जो बिज़ौरे का पाक तैयार किया है वह ले आओ। उससे मेरे रोग का शमन होगा।'
सिंह अणगार बिज़ौरे का पाक ले आते हैं और उसके प्रयोग से भगवंत रोग मुक्त हो जाते हैं। सिंह अणगार प्रसन्नचित्त हो जाते हैं। सभी श्रमण-श्रमणी को, देव और मनुष्यों को... सारे विश्व को संतोष होता है। चूंकि सब के मन का समाधान हो गया!
चेतन, इसलिए कहता हूँ कि तू अपने मन का समाधान करना सीख ले। समाधान से ही शांति प्राप्त होगी। समाधान करने के उपाय मैं तुझे लिखता रहूँगा। वे सारे उपाय लिखूगा ‘कर्मसिद्धांत' के माध्यम से।
कर्मसिद्धांत' ऐसा परिपूर्ण सिद्धांत है कि जिसके माध्यम से मनुष्य अपनी सभी समस्याओं का समाधान पा सकता है। 'कर्मसिद्धांत' इस दृष्टि से पढ़ना आवश्यक है। जिन विद्वानों में यह दृष्टि नहीं होती है, वे विद्वान, कर्मसिद्धांत के अनेक ग्रंथ पढ़ने पर भी, न स्वयं मनःशांति पाते हैं, न दूसरों को मनःशांति प्रदान करते हैं। मात्र अभिमान करते हैं: 'मैं कर्मसिद्धांत का पारगामी विद्वान
कर्मसिद्धांत से वास्तविक समाधान प्राप्त होता है। शाश्वत समाधान प्राप्त होता है। मन समाधान का स्वीकार करता है। उसे शांति प्राप्त होती है।
चेतन, समाधान पाने के बाद मन समताभाव से कष्टों को सहता है, दुःखों
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