Book Title: Samadhan
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह सोचती है: 'इस जीवन में मुझे सावधान रहना होगा। कभी किसी व्यक्ति का मैं चरित्रहनन नहीं करूँगी। किसी भी व्यक्ति पर व्यभिचार वगैरह के आरोप नहीं लगाऊँगी। अब मुझे अपयश कर्म बाँधना नहीं है।' यह हुआ समाधान। समाधान से पैदा हुई शांति और समता! समाधान से पैदा हुई दुःख सहन करने की शक्ति। चेतन, यह तो एक उदाहरण दिया है, 'कर्मसिद्धांत' के माध्यम से समाधान पाने का | आगे जो पत्र लिखूगा उसमें 'आत्मा' और 'कर्म' के विषय में कुछ बातें लिलूँगा... और यदि तेरी जिज्ञासा बढ़ती रहेगी तो मेरी पत्रमाला चलती रहेगी। तू स्वस्थ रहे, प्रसन्नचित्त रहे - यही मंगल कामना । - भद्रगुप्तसूरि For Private And Personal Use Only

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