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"भगवंत, यदि कार्य से कारण की सिद्धि होती है, तो जैसा कार्य हो उसके अनुरूप कारण होना चाहिए न?' 'होना चाहिए।'
'तो शरीर मूर्त है, शरीर का कारण कर्म है - ऐसा आप कहते हैं, तो कर्म भी मूर्त होने चाहिए न?'
'महानुभाव, कर्म मूर्त ही हैं। जैसे सोने का घड़ा अथवा मिटटी का घड़ा एक कार्य है, उसका कारण परमाणु होते हैं। सोने के परमाणु या मिट्टी के परमाणु । घड़ा मूर्त है तो परमाणु भी मूर्त हैं! वैसे यदि कार्य अमूर्त होता है तो उसका कारण भी अमूर्त होता है। ज्ञान अमूर्त है तो उसका कारण आत्मा भी अमूर्त है! उसी प्रकार शरीर मूर्त है तो उसका कारण कर्म भी मूर्त है!
भगवंत, सुख और दुःख अमूर्त हैं, तो सुख-दुःख के कारणभूत कर्म भी अमूर्त होने चाहिए न?'
'अग्निभूति, सुख-दुःख का उपादान-कारण तो आत्मा ही है, और आत्मा अमूर्त है। कर्म निमित्त कारण है।'
चेतन, कारण दो प्रकार के होते हैं -
उपादान कारण और निमित्त कारण | कुम्हार घड़ा बनाता है न? घड़े के दो कारण होते हैं। मिट्टी उपादान कारण है, कुम्हार निमित्त कारण है। तंतुवाय कपड़ा बनाता है। तंतु उपादान कारण है, तंतुवाय निमित्त कारण है।
वैसे सुख-दुःख का उपादान कारण आत्मा है, निमित्त कारण कर्म होते हैं। चर्चा है मूर्त और अमूर्त की। कार्य मूर्त हो तो कारण मूर्त होना चाहिए | 'कर्म' पुद्गल होते हैं, इसलिए कर्म मूर्त होते हैं। पुद्गल मात्र मूर्त होता है।
चेतन, भगवान का और अग्निभूति का संवाद कितना सुंदर है! कितना शिष्ट और तलस्पर्शी है! चूंकि अग्निभूति के हृदय में भगवान के प्रति स्नेह जागृत हो गया था! भगवान तो करुणा के सागर थे ही! तत्त्वचर्चा में संवादिता होनी चाहिए | तत्त्वचर्चा में कटुता का प्रवेश नहीं होना चाहिए। ___ अभी भगवान और अग्निभूति का संवाद पूरा नहीं हुआ है। शेष चर्चा अगले पत्र में लिखूगा। तू स्वस्थ रहे, कुशल रहे, यही मंगल कामना।
- भद्रगुप्तसूरि
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