Book Title: Samadhan
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को सहन करता है और अनंत कर्मों की 'निर्ज़रा' करता है। जीवन में शांति, समता और समाधि सहजता से प्राप्त करने का एक उदाहरण देकर आज यह पत्र पूर्ण करूँगा। एक सुशीला सन्नारी है। वह पतिव्रता है। फिर भी उसकी सास ने उस पर कलंक मढ़ दिया - 'यह स्त्री व्यभिचारिणी है।' वह सुशीला स्त्री इस आरोप से अशांत और संतप्त हो जाती है। क्या करे वह स्त्री? 'मैंने कोई भी परपुरुष का संग नहीं किया है, मैं सदाचारिणी हूँ...' ऐसा वह कहती है, परंतु सास उसकी बात नहीं मानती है, पति भी माँ का पक्ष लेता है। वह स्त्री सोचती है: 'मैं सदाचारिणी हूँ, अकलंक हूँ, फिर भी मेरे पर कलंक क्यों आया? मेरी सास ने मेरे पर कलंक क्यों मढ़ दिया? कारण तो होना ही चाहिए। कारण के बिना कार्य नहीं होता है। सास अच्छी नहीं है, इसलिए उसने ऐसा काम किया? नहीं, सास ख़राब होती तो मेरी जेठानी पर भी आरोप मढ़ देती! उस पर आरोप नहीं मढ़ा, मेरे पर मढ़ा है। घोष का प्रतिघोष होता है। क्रिया की प्रतिक्रिया आती है। इस जीवन में मैंने किसी पवित्र व्यक्ति पर ऐसा गंदा आरोप नहीं लगाया है, जहाँ तक मुझे याद है। तो फिर पूर्वजन्म में मैंने किसी निर्दोष व्यक्ति पर ऐसा आरोप लगाया होगा? उसका चरित्रहनन किया होगा? ___ मैंने ही पूर्वजन्मों में किसी निर्दोष पर कलंक लगाया होगा, उसको बदनाम किया होगा। उस पापक्रिया से मैंने 'अपयश' नाम का कर्म बाँधा होगा । आत्मा के साथ बँधा हुआ वह कर्म इस जन्म में अपना प्रभाव बताता है! 'अपयश' कर्म से मैं कलंकित हुई हूँ| बदनाम हुई हूँ। मेरी सास तो निमित्त मात्र है। मुख्य कारण मेरा 'अपयश' नाम कर्म ही है। जितना समय उस कर्म को भोगने का निश्चित होगा, मुझे भोगना ही होगा। समय पूर्ण होने पर मेरा कलंक दूर होगा और 'अपयश' कर्म नष्ट हो जाएगा। 'यशकीर्ति' नाम का कर्म उदय में आएगा! ___ हो गया समाधान उस सन्नारी के मन का! अब वह सास को दोष नहीं देती है! इसलिए सास पर द्वेष नहीं होता है! वह स्वस्थ रहती है! उसकी निंदा करनेवालों के प्रति भी वह आक्रोश नहीं करती है। For Private And Personal Use Only

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