Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
(४२)
भाग-6 "दशवैकालिक- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य|+चूर्णि:) अध्ययनं [९], उद्देशक [३], मूलं [१५...] | गाथा: [४३९-४५३/४५६-४७०], नियुक्ति : [३२९.../३२७...], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि
ल
श्रीदशवैकालिक
प्रत सूत्रांक [१५...]
गाथा ||४३९४५३||
विनयाध्य
यने ॥३१८॥
ततिअउद्देसगस्सामिसंबंधो, जहा सीसो विणीओ भवइ तदुपदरिसणस्थमिदमुच्यते 'आयरिंअं अग्गिमिवाहिअग्गी-18३ उद्देशकः ॥४३९॥ वृत्तं, आयरिओ मुत्तत्थतदुभअविऊ, जो वा अन्नोऽवि सुत्नत्थतदुभयगुणेहि अ उववेओ गुरुपए ण ठाविओ सोऽवि आयरिओ चेब, तमायरियं जहाऽऽहियग्गी बंभणो अगणिं परमाए भत्तीए 'सुस्सूसमाणो पडिजागरिजा' पडिजागरइ2 णाम मा विज्झाहितित्तिकाऊण तस्स समीवं अमुंचमाणो अभिक्खण इंधणाणं साहरमाणो अच्छइ, एवमयमवि सीसो सुस्वसमाणो8 पडिजागरिज्जा, आह-णणु एस अस्थो पढमुद्देसए 'जहाऽऽहियग्मी जलणं णमंसि' ति भणिओ, आयरिओ भणह-तत्थ आयरियं
व पडच भणियं, इह पुण आयरियं च सुओवएसगं च पहुच भण्णा, जहा आयरिपक्वणं अणतिकमणिों एवं सुतोवदेसगस्सवि। णातिकमणिअंतिकाऊण पुणरुत्तदोसो न भवतीति । पडियरणोबायो इमो, जहा- आलोइएणमिगितेण वा छदं आराहेजा, तत्थ छंदो नाम अभिप्पाओ, त छदं इंगिएण आलोइएण य आराधेज्जा, तत्थ आलोइएण य जहा आयरिएण पाउरणं आलोइयं सीयं च पडद, कत्व वा गंतव्य ? तमेवप्पगारमालोइयं णचा तस्स आयरियस्स तमभिप्पाय पाउरणं उववाएज्जा, एवमादि, सहा इंगिएणचि जाऊण आयरियस्सभिपायमुववाएज्जा, तं च इंगित इमं 'सेत्ति' आयरिएण गातकंपो का, अहो वा सायमिति भासितं, पाउरणमाणेज्जा, जो पूण तेणऽऽगारेण आलोइयं इंगित वा णाऊण छन्दमाराहेइ स पुज्जो भवइ, स पुज्जो णाम पूणिज्जोत्ति वा एगट्ठा, सो व विणओ किमत्थं पउंजितब्बोति ?, अतो भण्णइ- 'आयारमट्ठा.'॥४४०॥ वृत्तं, पंच
P ॥३१८॥ विधस्स णाणाइआयारस्स अट्टाए साधु आयरियस्स विणयं पउंजेज्जा, सुस्सूसमाणोति सोउमिच्छा मुस्सा, जहा किमह आण-TI प्पहिामीत्त पज्जुवासमाणो अच्छा, जाहे य आणचो भवति जहा इमं ते कायवं, ताहे वयर्ण परिगिहिऊण जहेव तेणायरिएण|
दीप अनुक्रम [४५६४७०]
1550
अत्र नवमे अध्ययने तृतीय उद्देशक: आरब्ध:
[331]
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