Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
भाग-6 “दशवैकालिक'- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य|+चूर्णि:) (४२) | चूलिका [१], उद्देशक , मूलं [१/५०६-५२४] / गाथा: [४८२-४९९/५०६-५२४], नियुक्ति: [३६१-३६९/३५९-३६७], भाष्यं [६२...]
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि
प्रत
सूत्रांक
[१] गाथा ||४८२४९९||
श्रीदश-णिोकम्मदव्वअरती-अणिट्ठा सद्दादयो दवा पोकम्मदव्यअरई भण्णा, जाहे अरती वेदणिज्जं कर्म उदि ताहे भावअरई भवइ। कालिकाइदाणि वर्धा भण्ण, तं च जहा वक्कसुद्धीए भणिय तहा इहपि भावियव, वर्कतिदारं गतं । सा य अरती जाहे परीसहाण 15
इष्टान्त: चूर्णी उदएण उदिज्जति ताई सा निच्छयी सुहविवागतिकाऊण सरीरपीडाकरावि सम्म अहिया संयम्या । एत्थे दिडता, 'जहा नाम हिताहित१रतिवाक्य आउरास्सिह०३६६॥गाथा,आउरो-गिलाणो, सो य बणेण केणड आगंतुगेण सरीरसमुत्धेण वा आउरीको होज्जा, जहा णामकारिचेष्टाः
४ आउरस्स तस्स इह लोगो 'सीवणछज्जेसुक (की) माणेसु जंतणा अपत्याच्या आमदोसपरिहारों विराई हियकारी
भवई' तत्थ तणा पसिद्धा, 'अपत्थकुच्छा' णाम अपत्थपरिहारी मण्णइ, 'आमं अजिणं भण्णइ, आमदोसमवि परिहरति, विरती' णाम विलोमीमादियाणि अलभणाणि आहारतस्स भवति, एयाणि पच्छा सुहाणिन्तिकाऊण पिरती भन्नति, हियकारीणि य से पच्छा भवंति, एवं-'अपिहकम्मरोगा० ॥ ३६७ ॥ ग.था, अट्ठविधेण कम्मरोगेण आउरस्स जीवस्स तस्स कम्मस्स तिगिच्छाए आरद्वाए अणेगअदव्यषमण भूमीसज्जाकदुसज्जादी उक्त अव्वाबाहमुहकारणं ईहमाणस्त जा धम्मे रती अधम्मे य अरती सा हियकारिया भवद । किंच-सजशाय० ॥३३८॥ गाथा, सज्ज्ञाओ बायकापुच्छणादी पंचविधी, तमि सज्झाए सचर-1 सर्विधे य संजमे तवे व वारसविध येयावच्चे दसप्पगारे, झाणजोगे दुविधे, तं०-धम्मे सुक्के य, जो एतेसु सज्शायादिसु रमति साइंमि य असंजमे न रमती सो पापति सिद्धिं । आह-णणु तवग्गहणेण सज्झायवेयायच्चयाणा गहिया चेब, आयरियो | |३५१॥ आइ-जमतसिपि गहणं तं पाइण्णताउपपदारसणथं कय, सत्थंमि बारसविहमिाष तवं एते पहाणतरा, तत्थति समाआ पहाण-12 रो, भणियं च-वारसविहमिवि तवे सम्भितरवाहिरे जिणखाए । णवि अस्थि णवि य होही सज्झायसने तयो कम्मं ॥१॥
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दीप अनुक्रम [५०६५२४]
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