Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 349
________________ आगम (४२) प्रत सूत्रांक [...] गाथा ||४६१ ४८९|| दीप अनुक्रम [४८५ ५०५] भाग-6 “दशवैकालिक”- मूलसूत्र - ३ (निर्युक्तिः+भाष्य|+चूर्णिः) अध्ययनं [१०], उद्देशक [-], मूलं [५...] / गाथा: [ ४६१-४८१/४८५-५०५] निर्युक्तिः [३२९-३५८/३२८-३५८], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक निर्युक्तिः एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि श्रीदशवैकालिक चून. १० भिक्षु अ० ॥३३६ ॥ आह— को एत्थ हेऊति, अओ हेऊ दितो य इमेण गाह्रापच्छद्वेण भण्णह- 'अगुणत्ता इइ हेऊ० || ३५२|| गाहापच्छद्धं, तीए पुय्वभणिताएँ (पहनाए ) गुणजुत्तत्तणं हेऊ, दितो सुरणं, सुत्रनस्स तात्र गुणा भण्णंति, जं तं दितो सुवनं भणितस्त इमे गुणा अट्ठ, तं०-- 'विसघाड़' गाहा ॥ ३५३॥ विसघाइते रसायणसामत्थजुनं मंगलसाहगं, विथिएणाम जं जं अभिष्पाइज्ज तं कडगकुंडलादी णितिज्ञ्जतित्ति अतो विणीयया तस्स गुणो, पंचमो 'पयादिणावत्तया' नाम जाहे आवडिये भवइ तथा पयाहिणं आवइ, दहा गुरुयतं छडो गुभो, अज्झणं सत्तमो गुणो, अकुडभावो अटुमो गुणो भवड़ भगिता व सुवण्णगुणा । दाणा - चउकार० ॥ ३५४ ॥ गाहा, जहाँ 'चउहि कारणेहि' ति कसच्छेद तावतालणादीहिं (निहसताबछहतालगादी हि ) परिसुद्धं सुषणं भव तं विघा रायगडणं अकुणागुणजुनं भगति 'तं निसगुणावेयं' टीकायां तु 'तं कसिणगुणोबेअं' ० ) ३५५ ॥ गाथा, जहा तं हिसादिगुणजुत्तं सुत्रन्नं भवति न से जुतव, नय णामरूपमेव सुवनं भव, तहा अगुगों सो भिक्खु ण भवइत्ति, 'जुत्तीण्णयं पुग०' ।। ३५६ ।। गाथा, जइ पुण केणइ तारिसंग उपाएण जुत्तीमुत्रनं कीरेज्जा, न हु तं सुवर्ण चणं चिरणवि काले हि गुणेहिं हिसाहिं असन्तेहिं सुवणं भव, तहा - 'जे अज्झषणे मणिशा०' ॥ २५७ ॥ गाथा, जे एयंमि अयणे भिक्खुगुणा भणिया, ते सम्म फासमाणो सो भिवृ भवति, जस्स जं भिक्खुत्ति नामं कयं तं भावं पडुच, न नामं ठवणं दव्यंति कहे ? सुवनस्यवत्थे जहा सोभणव विघातादिगुण जुनं च काऊण सुवन्नस्स सुवनंति नाम कथं, तहा जे सुमित्र अयणे गुणा भणिया ते बट्टमाणो जो भिविन सो भिक्खु भण्णइ न जो भिसीलो सो भगवो भव, कही, जो भिक्खू गुणरहिओ० ' गाथा ।। ३५८।।। [349] भिक्षुगुणे पंचावयवाः ||३३६ ॥

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