Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 358
________________ आगम (४२) । भाग-6 “दशवैकालिक"- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [१०], उद्देशक ], मूलं [५...] / गाथा: [४६१-४८१/४८५-५०५], नियुक्ति : [३२९-३५८/३२८-३५८], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक गाथा ||४६१४८१|| मणी णाम मुणिनि वा णाणिति या एगट्ठा, जो सो माणुसरिद्धिनिमित्रं तवसंजमं न कुन्चह, से अनियाणे, णगादिसु अकोड- परीषहजया बैकालिक हले भवेज्जा, सो एवंविहगुण जुत्तो भिक्षु भवातित्ति । किंच-सक्काणं चेत्तवेतसिगा धम्मा इति वणिसेहणत्थमिदमुच्यते- हस्तादि अभिभूअ कारण.॥४७४ा पूर्तकायो सरीर भण्णइण केवलं मणसा, परीसहे ' अभिभूय' ति अभिमुहं जातिऊण || संयतता १. समुद्धरे' णाम सम्म उद्धरे, सम्म पासे करेजत्ति बुत्तं भवति, जातिग्गहणेण जम्मणस्स गहणं कयं, बधगहणेण मरणस्स। भिक्षु अ गहणं कर्य, ताओ जम्मणमरणाओ समुद्धरे अप्पाणंति, कई पुण समुद्धति !, 'अतो भण्णइ । विदित्तु जाती मरणं महब्भय' 4 1 पुच्वं भणियं, जातिमरणं महन्मयं विदित्ता नाग जाणिऊण सामण्णिए रते भवेजा, समणभावो सामणियं भन्नइ सो एवंगुण-४ जुतो भिषखू भवतित्ति । 'समणभावो सामणियमिति' तदुपरिसणस्थमिदमुच्यते- 'हत्थसंजए.' ॥ ४७५ ॥ पूर्व, हत्थपाएहि ॥ मकुम्मो इव णिकारणे जो गुत्तो अच्छइ. कारणे पडिलेहिय पमझिय वावारं कुब्बइ, एवं कुबमाणो हत्थसंजओ पायसंजओ भवह वायाएवि संजओ, कई ?, अकुसलवइनिरोधं कुब्यद, कुसलबहउदीरणं च कजे कुब्बइ, 'संजइंदिए' नाम इंदियविसयपयारगिरोधं कुव्यइ, विसयपत्तेसु इंदियस्थेसु रागदोसपिणिग्गरं च कुचतित्ति, 'अज्झप्परए' नाम सोभणज्झाणरए, 'सुसमाहिअप्पा' नाम णाणदसणचरिते सुटु आहिओ अप्पा जस्स सो सुसमाहिअप्पा भण्णइ, सुत्तत्थगहणेण सुत्तस्स अस्थस्स तदु ॥३४५॥ भयस्स गहणं कर्य, तत्व गुत्त्थं विजाणति पुबिल्लाणि य जो कारणाणि कुवति सो भिक्खू भवइत्ति । फिंच-'उचहिंमि अधिछए । ४४६ ॥ वृत्त, उवही वस्थपनादी, ताए उवहिए अमुच्छिए अगिदिए य भवेज्जा, मुच्छासहो य गिद्धिसदो य दीप अनुक्रम [४८५५०५] [358]

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