Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
(४२)
प्रत
सूत्रांक
[१५...]
गाथा
||४३९
४५३॥
दीप
अनुक्रम
[४५६
४७०]
भाग-6 “दशवैकालिक”- मूलसूत्र - ३ (निर्युक्तिः+ भाष्य |+चूर्णिः)
अध्ययनं [९], उद्देशक [३], मूलं [१५...] / गाथा: [४३९-४५३ / ४५६-४७० ], निर्युक्ति: [३२९.../ ३२७...], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र - [४२] मूलसूत्र- [०३] दशवैकालिक निर्युक्तिः एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि
श्रीदशवैकालिक चूम
९ विनयाध्य.
॥३२१॥
वायादुरुताणि पुण दुरुद्धराणि भवंति, वेराणुबंधीणि य भवति, 'महम्भयाणि य' भणियन्वति सोयारस्स कहमाणस्स य दोण्हवि तत्थ सोयारस्स जहा चोरोति भणिए कि परेण सुतं होज्जत्ति भयमुप्पज्जति, तहा मासगस्सवि एवं गिरा दोसादि महतं भवतित्ति । ते एवं ' समावयंता ० ॥ ४४६ ॥ वृत्तं, 'समावयता नाम अभिमुहमावर्यताणि वयणाणि कडुगफरुसाणि मेहविवज्जियाणि अभिघाया वयणाभिघाता 'कन्नं गया दुम्मणिअं जणंति 'चि, ' दुम्मणिअं ' नाम दोमणस्संति वा दुम्मणियंति वा एगड्डा, वयणाभिधाए कोयि असत्तिओ सहद्द कोइ धम्मोति, जो पुण धम्मोचिकाऊ सहइ सो य 'परमग्गसूरे' भवइ, परमग्गसरे णाम जुद्धसर-तवसूर- दाणसूरादीर्ण सूराणं सो धम्मसद्धाए सहमाणो परमग्गसूरो भवद्द, सव्वसरणं पाहण्णयाए उवरि बत्ति वृत्तं भवति 'जिइंदिए ' चि साहुस्स गहणं, जो एवं वयणाभिघाए सहइ सो पूयणिज्जो भवति । एते वयणदासे णाऊण ' अथण्णवायं ०' ॥ ४४७ ॥ वृत्तं अवन्नो नाम अयसा, तस्स अवन्नस्स वयणं अबन्नवाओ भण्ण, तं अवन्नवादं परम्मुहस्स नो भासेज्जा, पच्चक्खमचि जा य पडिणीयभासा, जहा तुमं चोरो पारदारिओ वा वहा ओहारिणं पियकारिणि च मासं नो भासेज्जा, तत्थ ओहारिणी संकिया भण्णति, जहा एसो चोरो पारदारिओ ?, एवमादि, भणियं च ' से मंते! मण्णामिति ओहारिणी भासा आलावगो, ' अप्पियकारिणी' नाम मासिज्जमाणी अदेसकालपयतचेण अण्णेण वा केण कारणेण सोतारस्स णो पीरमुप्पा सा अधि (पिय)कारिणी भण्णहात, तमेवप्पारं जो ण मासह सदा सो पूयाणज्जो भवइति । 'अलोलुए ' ॥ ४४८ ॥ वृत्तं, 'अलोलुए' नाम उक्कोसेसु आहारादिसु लुद्धो भवइ, अहंवा जो अप्पणोषि देहे अप्पडिंबद्धो सो अलोलुओ भण्णइ तथा कुहगं -चंदजालादीर्य न करेाति अक्कुहएचि, अडवा वाइ
[334]
२ उद्देशकः
॥३२१॥
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