Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
(४२)
भाग-6 “दशवैकालिक'- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [९], उद्देशक [३], मूलं [१५...] | गाथा: [४३९-४५३/४५६-४७०], नियुक्ति : [३२९.../३२७...], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि
प्रत
सूत्रांक
२ उद्देशक:
[१५...]
गाथा ||४३९४५३||
श्रीदश- भण्णइ, तंजहा-'तेसिं गुरूर्ण ॥४५२॥ वृत्तं, तेसिं णाम जे ते विणओवएससकारादिगुणजुत्ता भणिया, गुरवो पसिद्धा, वैकालिका
गुणेहि सागरो विव अपरिमिया जे ते गुणसागरा तेसिं गुणसागराणं, सोच्चाग णाम सोऊण वा सोच्चाण वा एगट्ठा, चूणा
मेहाची पुनभाणओ, सोभणाणि भासियाणि सुभामियाणि, 'चरे ‘णाम आयीरओबएसमायरिजा, मुणिगहण मुणित्ति वा विनयाभ्य.
नाणिति वा एगट्ठा, पंचसु महबएसु जयणाए रो भवेज्जा, सारक्खणजुत्तोत्ति बुत्तं भवहात्ति, गुत्ते-मणवयणकाइएहिं गुत्तो
भवेज्जा, कोहाईहि चउहि कसाएहि उवसंतहिं चत्तीह आयरियाणं सुभासियाई गहिऊणमागरेज्जाति, जो एयप्पगारगुणजुत्तो ॥३२४॥
साहू सपूयणिज्जो भवद, इदाणि विणयफल भण्णइ- 'गुमामह सयपं०॥४५३।। वृत्तं, तत्थ गुरू पसिद्धो, इहग्गहणेण मनुस्सलोगस्स गहणं, कम्मभूमीए वा गहणं कर्यति, सयबनाम सययंति वा सन्चकालंति वा एगहा, 'पडियरिय ' नाम जिणावबइटेण विणएण आराहेऊणति चुतं भवइ, 'मुणी 'नाम मुणित्ति वा णाणित्ति वा एगहा, जिणाणं वयणं तमि जिणवयणे णिउणो| जिणवयणणिउणे, तहा 'अभिगमकुसले ' अभिगमो नाम साधणमायरियाणं जा विणयपाडवत्ती सो अभिगमो भण्णइ, त। मि कुसले, वितिय कुसलगहणं कुत्थियाओ कारणाओ स लसइत्ति कुसलो, अहबा अच्चस्थानमित्तं वा पुणो भण्णमाणो: कुसलसद्दा पुणरुतं ण भवतीति, सो एपप्पगारेण धुनिउ अट्ठविहं कम्मरयमले पृथ्वकर्य नवस्स आगमं पिहिऊणं' भासुरमउला
गई बई' ति नत्थ पभासतीति भासुरा, अउला नाम अण्णण केणवि कारणेण समाणगुणेहि न तीरइ तुलेउ सा अतुला भण्णइ. असा सिद्धी, ते भामुरं अतुलं गई वयंतीति, बईति नाम वयंतित्ति वा गछतिति वा एगट्ठा, साबसेसकम्माणो देवलोग सु-11
दीप अनुक्रम [४५६४७०]
॥३२४
[337]
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