________________
दिव्य संदेश
दूध से घी निकालने की एक प्रकिया है। दूध में घी है किन्तु उसे देखने और पाने के लिए एक प्रक्रिय से गुजरना होता है । हमारे भीतर आत्मा है । उसे देखने के लिए, आत्मा से परमात्मा बनने के लिए एक प्रक्रिय से गुजरना आवश्यक है। उस प्रक्रिय से गुजरे बिना न आत्मा को देखा जा सकता है, न परमात्मा बना जा सकता है। आत्मदर्शन की प्रक्रिया है - जानो, श्रद्धा करो, आचरण करो और तपो। यह मार्ग आत्मा से परमात्मा बनने का मार्ग है और इसे ही मोक्ष मार्ग कहा गया है।
वर्तमान युग को एक मोड़ देने की आवश्यकता है। अगर इस भौतिकवादी और सुविधावादी युग में, विज्ञापनों और गलत आकर्षणों के युग में मोड न ला सके तो आनेवाली पीढ़ी दायित्वहीन, बौद्धिक दृष्टि से कमजोर और विद्या की दृष्टि से शून्य होगी। दायित्व-बोध और गंभीरता जैसे तत्त्व विरल बन जाएंगे। इसलिए उपदेश-रुचि पर अधिक से अधिक ध्यान केन्द्रित होना चाहिए। हम उपदेश-रुचि के प्रयोग द्वारा जनता में नव तत्त्वों के प्रति, सत्य और धर्म के प्रति एक अनिवार्यता की अनुभूति जगाएं, यह अपेक्षित है । यह अनुभूति कराना हमारा सामाजिक दायित्व है, राष्ट्रीय दायित्व है और आत्मिक दायित्व है । उपदेश-रुचि का होना इन तीनों दुष्टियों से बहुत महत्व-पूर्ण है । ऐसा करने वाला व्यक्ति युग को मोड़ने वाला है और वह युग प्रवर्तन में अपनी समुचित भूमिका निभाता है। युग के प्रवाह में न चलकर उसके प्रतिकूल चलने वाला व्यक्ति आकर्षण की दिशा को बदल सकता है। अभिभावकों का, माता-पिता का, यह दायित्व है कि वे बच्चों की रुचि के साथ न चलें किन्तु उनकी रुचि को मोड़ने में अपना योग दें। यदि ऐसा होता है तो महावीर की उपदेश-रुचि वालो बात हमारे लिए बहुत सार्थक और प्रासंगिक बन पाएगी।
- आचार्य श्री महाप्रज्ञा जी
"महावीर का पुनर्जन्म' से (H. H. Acharya Sri Mahapragya Ji)
From "Mahavir ka purnarjanma"
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org