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46. उत्पाल से बातचीत
स्वामी जी लगातर अपना अधिक से अधिक समय ध्यान में लगाते हुए निद्रा और आहार छोड़कर धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर जा रहे थे। एक दिन अस्ति गाँव में एक निष्ठा से स्वामी जी ध्यान में मग्न हो गये थे। उसी वक्त उस जगह पर उत्पल नामक एक जैन मुनि आये । वे पार्श्वनाथ जी की धर्म परम्परा के अनुयायी थे। उन्होंने स्वामी जी की अनन्य दीक्षा देख कर अपनी दिव्य दृष्टि से उनकी पूर्वपरम्परा को देख ।। ये तो वही हैं जो शूलपाणिचैत्य में स्वामी जी के अनुभव देखकर उन से बातचीत करने के लिए वहीं पर बैठ गये। स्वामी जी जब ध्यान से बाहर आये तब उन्होंने भक्ति भाव युक्त हो कर एक निष्ठयोगेश्वर के रूप में स्वामी को जान लिया और समझ गये कि स्वामी जी को थोड़े ही दिनों में केवल ज्ञान की प्राप्ति हो जायेगी। ज्योतिषी ने यह सब बताया। इसके बाद शूल पाणिचैत्य में स्वामीजी को जो अनुभव हुए उन सबका का व्यख्यान किया। स्वामीजी का भयंकर राक्षस से लडना स्वामीजी के पिछले जन्म की वासनाओं (संस्कारों) को मिटाने के प्रयत्नों का प्रतिनिधित्व करता है। अन्दर बसी हुई आत्मा के साक्षात्कार अर्थात् स्वामीजी के चित्त का अन्तर्मुखी होने का प्रतिनिधित्व करता है। कण्ड के दो आभरण भविष्य द्वाणी करते हैं कि मानव
46 CONVERSATION WITH UTPALA
As days went by Bhagawan Mahavira came to devote more and more of his time to Dhyana (Meditation) only, even neglecting to take timely food or sleep. He was proceeding steadily towards his goal. One day, when Bhagawan Mahavira was deeply immersed in meditation, in a Chaitya ( a place for mendicants) in the village of Asthi, there came a monk by name Utpala to the Swami. Utpala belonged to the philosophical school and tradition of Tirthankar Parshvanathaji. Now this mendicant, being gifted with ability to see into the past (present and future) was able to see in a flash back the experiences of the Swami in the temple of Shulapaniyaksha as also the facts relating to the life of the Swami. So he wanted to converse with the Swami. When the Swami came out of his meditation, Utpala bowed to him and, after looking at him fixedly in reverential awe, praised him as the Lord of the Yogis (Prince of Realised Souls). He also foretold that the Swami would soon realise Kevalajnana (the ultimate wisdom); then he interpreted the experiences that the Swami underwent in the Chaitya of Shulapaniyaksha as follows:
The fight with the horrible monster (Shulapaniyaksha) represents the efforts to overcome the pulls of the past lives; the white Cuckoo represents the Swami's mind turning inwards (to realise the indwelling soul). The Cuckoo with Multicoloured feathers represents the perfection attained in Anekanthavada. - multi-pronged probing of Truth. The two
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