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89. श्रमण भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण
वह वर्षा काल का चौथा मास, सातवाँ पक्ष, कार्तीक की अमावास्या का दिन था । स्वामी ने आपापापुरी (पावापुरी) में राजा हस्ति पाल के लेखा गृह में अपना अन्तिम प्रवचन दिया । वहाँ काशी, कोसल, मल्लिका लिच्छवी देशों के राजा स्वामी के प्रवचन सुनने के लिये आ पहुँचे । स्वामी ने उनको सिद्ध पुरुष (मुक्त आत्मा) की स्थिति का वचन करते हुए प्रवचन दिये। उन्होने अपने प्रवचन में इस प्रकार कहा- सिद्धत्व को प्राप्त आत्मा की ओर पाँचों भूत नहीं जाते और न वे उसका स्पर्श करते, बल्कि पीछे मुड़ जाते हैं, वह स्थिति ऊहापोह के अतीत हैं अर्थात् उस स्थिति के बारे में तर्क-वितर्क करने की कोई जगह नहीं है । वह मन से सोचने की स्थिति नहीं है और न वह तो लम्बी है और न तो छोटी। वह तो न गोल है। वह न तो सफ़ेद है और न तो काली । उसका तो न कोई लिंग भेद है और न तो किसी प्रकार का सम्बन्ध उसको वस्तु से अथवा कर्म से नहीं है, उसके लिये उपमेय विषय भी कोई नहीं है ; वह आकृति के बिना किसी एक शून्य स्थिति में रहती है। इस प्रकार सुदीर्घ प्रवचन करते हुए श्रमण भगवान महावीर स्वामी अपने १४०० सन्यासियों, ३६००० सन्यासिनियों, १३०० आश्रमवासियों १५९०० श्रावकों, ३१५००० श्राविकाओं को छोड़कर उस कार्तिकामावास्या की रात में चन्द्रमा के स्वाति नत्र में रहते समय निर्वाण प्राप्त किए। स्वामी के सिद्ध पुरुष होते ही इन्द्र ने अपने देव- गण - सहित प्रणाम करके पुष्पक विमान से सादर उनका स्वागत किया। स्वामी के निर्वाण के एक निमिश के बाद गौतम इन्द्रभूति दौड़ दौड़ कर स्वामी के पास पहुँचा और समय पर न आसकने के
89 THE NIRVANA OF SHRAMANA BHAGAWAN MAHAVIRA SWAMY
That was the fourth month of the rainy season, the fortnight was the 7th. The date was Amavasya (15th of the waning fortnight) of the holy month of Karthika. The Swamy was camping in Apapapuri at the office of the Scribes belonging to King Hasthipala. That was the last discourse made by the Swamy; on that day, the rulers of Kasi, Kausala, Mallika, Licchivi countries came there to listen to the Swamy. The Swamy explained to them the character and attainments of a Siddha, a liberated Soul. When an Atman attains Siddhi, the five elements cannot touch it (taint it), and so return to their sources. This state cannot be imagined because it is beyond the powers of the mind to conceive it. It is neither tall nor short, neither curved nor straight; neither black nor white; neither masculine nor feminine. It is not an embodiment. It has no attachments to any objects. It is not affected by any acts. No other thing can be compared to it. It has no shape and it has a state that may be explained as an inexplicable state. Thus Shramana Bhagawan Mahavira Swamy gave a lengthy discourse at this place for the last time in his life and attained Moksha. Thronging the place were 14000 Monks, 36,000 Sanyasins (nuns), 1300 Hermits, 1,59,000 Shravakas besides 3,18,000 Shravikas, plunging all these people into sorrow, the Swamy gave up his physical body and the Moon was in conjunction with Star Svathi. It was night time. When the Swamy thus became a Siddha and rose to his Heavenly Abode, Indra came forth along
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