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51. चन्दनबाला पर स्वामी की कृपा
धनवाहन को घर लौट आने पर चन्दनबाला दिखाई नहीं पड़ी। किसी ने भी उसकी दुस्थिति के बारे में नहीं बताया। सारे कमरों में खोजने के बाद धनवाहन को अन्त में भूगर्भ के कमरे में घनवाहन ने बन्दी के रूप में पड़ी हुई चन्दनवाला को देख पाया । उसने उस हालत में चन्दनबाला को देखा, उस पर तरस खाया (दर्या हुआ), वहाँ पर उबले हुए उड़द चन्दनबाला के हाथ में देकर खाने को कहा । उसकी जजीरों को तोड़ने के लिये लुहार को बुलाने को गया। इधर महावीर स्वामीजी को ध्यान निष्ठा दिन व दिन बढ़ती रही और वे केवल ज्ञान साधना की ओर जा रहे थे। उस प्रकार निष्ठा में निमग्न स्वामीजी की नजरों में जन्दनबाला के कष्टों के दृश्य एक एक करके आने लगे । एक सप्ताह से तब तक स्वामी जी ने किसी से भिक्षा नहीं ली थी। उसी क्षण स्वामीजी ने प्रण किया कि अगर मुझे किसी से भिक्षा लेनी है तो मैं उसी स्त्री के हाथ से भिक्षा लूँगा जो मूंड मुडवाकर, बन्दी बनाकर, आँखों में आँसू भरकर उबले हुए उड़द हाथ में ले भिक्षा में देती है। चन्दनबाला से मिलने के लिये स्वामीजी महादेव राजमार्ग पर जा रहे थे। समय दो पहर का था । स्वामी जी को भिक्षा देने के लिये लोग अपने अपने हाथों में पात्रों को लिये हुए पंक्ति में खड़े हुए थे। स्वामी जी ने उन लोगों के हाथ की भिक्षा न लेकर सीधे घनवाहन के घर पहुँच कर चन्दनबाला को देखा। उस समय चन्दनबाला अपने को इस स्थिति से उबारने (बचाने) के लिये भगवान से प्रार्थना कर रही थी। इस विपत्ति से मुक्त करने (छुडाने)
51 SWAMI TAKES PITY ON CHANDANABALA
When Dhanavahana came back home he could not find Chandanabala in the house. His enquiries about the whereabouts of the princess did not bear fruit. However, Dhanavahana had the house thoroughly searched and ultimately found her imprisoned in the underground cell. Dhanavahana was sorry for her and gave her some boiled blackgram to eat and himself proceeded to fetch a blacksmith to have the shackles removed. In the meantime, the meditation of Bhagawan Mahavira was becoming more and more rewarding, and was irresistibly travelling towards Kevalajnana. Then, surprisingly, on this particular day the Swami saw in his mind's eye the pictures of torture affecting Chandanabala. For many days then, the Swami had not been accepting any Bhiksha (Alms) but now he vowed to accept alms from a woman who would exactly fit the description of the suffering princess with her boiled blackgram in her possession. In pursuit of this vow the Swami was proceeding through the thoroughfares of the city. It was noon and many housewives were ready standing at the thresholds of their houses to give alms to the Swami. But the Swami would not accept Alms from anyone of them. Straightaway, he reached the cell in the house of Dhanavahana and saw Chandanabala standing there with a bent head, lamenting her fate and expecting succour from Bhagawan Mahavira only. All the time weeping bitterly, her eyes filled with tears, she was awating the arrival of the Swami. Suddenly she heard her name being uttered
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