Book Title: Rushidattras
Author(s): Jayvantasuri, Nipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 16
________________ छे. पाटलिपुत्रना राजा नद महाराजना मंत्री शकटालना पुत्र स्थूलिभद्र गृहत्याग करीने वार वर्ष सुधी कोशा नाजनी वेश्याने घेर प्रेमविलासमां जीवन व्यतीत करे छे. पिताना मृत्यु पछी नाना भाईने मंत्रीपद सोंपे छे अने पोते संसार प्रत्ये वैराग्य उत्पन्न थतां साभु पासे दीक्षा ग्रहण करे छे. दीक्षा दरम्यान अपना गुर असना चारित्रनी परीक्षा करवा वेश्या कोशाने त्यां चातुर्मास गाळया ओकले छे. ज्यां स्थूलिभद् वेश्याली साथ रहेब उतां पण जळालवत् रही पोतार्नु शुश्च चारित्र स.बित करे छे. ते दरम्यान स्थूलिभदना वियोग साये कोशाने ऋतुओ केवा संताप आपे छे तेनु वर्णन अने स्थूलिभद्रना मिलने अनु हेयु केQ काल समान विकसित थाय छे ते वर्णव्यु छे. आ फागमा ४१मी कडी सुधीनां स्थलिभद्र के कोशान नाम पण आवत नथी. त्यां सुधीनी रचना सांसारिक प्रेम काव्यनी ज छे. पात्र छेवटनी चार कडीओमां ज कवि अछडतो उल्लेख को छे अने रचनाने जैन फागुनी परंपरागत कोटिमा मूकबाना औपचारिक प्रयत्न को छे. (३) ऋषिदत्ता रास : स. १६४३ मां रचायेल ४१ ढाळना आ रासनु संाइन अही कर्यु छे अटले ओ अंगे विगतवार माहिती पछीनां प्रकरणोमां आपी छे.. (४) नेमराजुल बारमास वेल प्रबंध : ___ आ बारमासी काव्यमां कवि जैनोना बावीसमा तीर्थकर ने प्रनाथे मुक्तिरूपी स्त्रीने मनमा धारण करी राजुलकुमारीने परणवा जतां अनो केवी रीते त्याग को तेनु वर्णन कर्यु छे. नेमनाथना विरह दरम्यान बारे ऋतुओ राजुलने केवी रीते विरहथी सतापे छे अने अन्यने सोहामणी लागती ऋतुओ राजुलकुमारीने केवी पीडा आपे छे ते वर्णव्यु छे. "बीजलीयां चरत कि कलपल हाइ हइयां रे दाधा उपरि लूण लगावइ बप्पैयां रे." अंते नेमनाथे जे मुकितना गुण गाया ते सांभळीने राजुले पण जिनेश्वर पामे सयमनी याचना करी अने शिवपुरीने वरी. (५) सीमंधर स्वामी लेख : __ ३९ कडीना आ स्तवनमां कविश्रे हालमां महाविदेहक्षेत्र बिचरता जैन तीर्थङ्कर सीमधरस्वामीनी स्तुति की छे : “भारः गुणवान अदा सीमधर स्वामी : तर नाम बोलतां मोढानांथी अमृत झरे छे, तेमज तारः गुणरूपी काले मारः अनरूपी भ्रपरने वीध्यो छे. तने मकवाने मारु मज खूब ज विहवळ छे पण शु कर? तु खूब ज दूर छे. तारा मुखरूपी चंद्रने जोवा जाटे मारा नयनो आतुर छे. तारा गुण गावा माटे तो मारी पासे अक्षर पण ओला छे." " अक्षर बावन गुण घणा तु, केता लखीइ लेख रे थोडइ घणउं करी मांनयो, सुख होसिइ तुम्ह देखिई रे." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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