Book Title: Rushibhaashit Sootraaani Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 9
________________ ऋषि भाषित प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[४], ........मूलं H / गाथा [१-२७] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [४] 'अंगरिसि' अध्ययनं सूत्रांक 9-800-8204552 गाथा ||१-२७|| आयाणरक्खी पुरिसे, परं किंचि ण जाणती। असाहुकम्मकारी खलु अयं पुरिसे ॥१॥ पुणरवि पावेहि कम्मेहि चोदिज्जतो णिच्चम समपी(संसारमी)ति अंगरिमिणा भारहारण अरहता इसिणा युइतं ॥२॥णो संवसि सक, सीहं [णासंवसता सक्क सोलं] जाणिनु माणवा। परम खलु पडिच्छन्ना, मायाए दुहमाणसा ॥३॥णियहोसे णिगृहंते, चिरंपी णोबदसए। किह में कोपि णज्जाणे; जाणेण त्य हियं सयं ॥५॥ण जाणामि अप्पाणं, आवो वा जति वा रहे। अज्जयारि अणज्जं वा तं गाणं अवलं धुव॥५॥ सुवाणि भित्तिए चित्तं, क-17 डेवा सुणिवेसित'। मणुस्सहिदक पुणिणं, गहणं दुब्बियाणकं ॥ ६ ॥ अन्नहा समणे होइ, अण्णं कुणंति कम्मुणा। अण्णमण्णाणि | भासते, मणुस्लगहणे हु से॥७॥ तणखाणुकंडकलताधणाणि बलोषणाणि । सढणियडिसंकुलाई मगुस्सहिदयाई गद्दणाणि ॥ ८॥ मुंजित्तुच्चाबर भोप, संकये कडमाणसे। आदाणरक्खी पुरिले, परं किंचि ण जाणति ॥३॥अदुवा परिसामज्भ, अदुवा बिरसे कड। ततो गिरि(क्खि)णप्पाण', पायकम्मा णिरु भति ॥ १०॥ दुप्पचिण्ण सपेहाए, अणायारं च अप्पणो । अणुवहितो सदा धम्मे, सो पच्छा परितप्पती ॥ २१ ॥ सुप्पाण्णं सहाय, आषार बाचि अपणो। सुपद्वितो सदा धम्मे, सो पच्छा उ ण तप्पति ॥ १२ ॥ पुवरत्तावरत्तमि, संकप्पेण बहु कई। सुकडं दुक्कई वावि, कत्तारमणुगच्छइ ॥ १३ ॥ सुकई दुक्कई वावि, अप्पणो यावि जाणति । पाय पं अण्णो वि J५ पुप्फसाल ज्झयण' जाणाति, सुक्काई व दुक्कडं ।। १४ णरं कल्लाणकारिंपि, पावकारिन्ति बाहिरा। पावकारिपि ते वूवा, सील तोत्ति बाहिरा ॥ १५ ॥ ऋषिभाषि चोरंपि ता पलंसंति, मुणीवि गरिहिज्जती। ण से एत्तावताऽचोरे, ण से इत्तावताऽमुणी ॥ १६ ॥ गणरस क्यणा चोरे, पास्स वरणा मुणी। अयं अप्पा विषाणाति, जे वा उटीमणाणिणो ॥ १७ ॥ जइ मे परो पसंसाति, असाधु साधु माणिया। न मे सा नायए भासा, - अप्पाण' असमाहितं ॥ १८॥ जति मे परो. विगरहाति, साधुसंति णिरंगणं । ण मे सक्कोसए भासा, अप्पाणं सुसमाहित ॥ १६ ॥ SROSS दीप अनुक्रम [३४-६०] ~9~Page Navigation
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