Book Title: Rushibhaashit Sootraaani
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 25
________________ ऋषि भाषित प्रत सूत्रांक [?] गाथा ॥१-४॥ दीप अनुक्रम [१७६ १८०] ॥ १४ ॥ प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन-[१६], .....मूलं [१] / गाथा [१४] .......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित ( पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) "ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं [१६] 'सोरियायण' अध्ययनं सिद्धि० । जस्स खलु भो बिसयायारा ण य परिस्वन्ति इंदिया या दवेहिं से बलु उत्तमे पुरिसेति सोरियायणेण अरहता इलिणा बुइतं तं कहमिति १, अणुष्णेषु सद्दे सु सोयबिसयपलेसु णो सज्जेज्जा णो रज्जेज्जा णो गिज्ज्जिा णो त्रिणिधायमाबज्जेज्जा, मण्गुणे ससु सोतविसयपत्त सज्जमाणे रज्जमाणे गियमाणे सुमणो असेवमाणे विप्reeतो पावकम्पस्स आदाणाव भवति, | तम्हा मणुष्णामणुष्णेसु सहसु सोयविसयपत्तं सु णो सज्जेज्जा णो रज्जेजा णो गि० णो सुमणे अण्णेऽवि एवं रूबेसु गंधेसु रसेलु फालेखु, एवं विवरीपसु णो दूसेज्जा ॥ दुद्दता इंदिया पंच, संसाराए सरीरिणं । ते चैव नियमिया संता, णेज्जाणाए भवंति हि ॥ १ ॥ दुद्द ते इंदिए पंच, रागदोपगमे । कुम्मो विव सगाई, सए देहरि साहरे || २ || वही सरीरमाहार, जहाजोएण जुजती। इंदियाणि य जोए य, तहा जोगे वियाणसु ॥ ३ ॥ ॥ एवं से सिद्धे बुई ० ॥ १६ ॥ सोरियायणणामयणं ॥ १६ ॥ ~ 25~ ॥ १३ ॥ विदुमज्भाय.

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