Book Title: Rushibhaashit Sootraaani
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 27
________________ ऋषि भाषित प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[१८], .........मूलं [१] / गाथा [१-२] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [१८] 'वरिसव' अध्ययनं प्रत सूत्रांक । गाथा , सिद्धि ॥ अयते खलु भो जीवे वज्ज समादियति, से कहमेत?, पाणातिवाएणं जाव परिग्गाहेण अरति जाब मिच्छादसणसल्लण बज्जं समाइत्ता हत्यच्छेयणाई पायच्छेपणाई जाव अणुपरियति णवमुई सगमेणं, जे खलु भो जीवे णो बज्जं समादियति से कहमेत?, परिसवकण्हेण अरहता इसिणा बुइतं-पाणाइवातवेरमणे जाव मिच्छादसणसलवेरमणेणं, सोइदियताणिग्गहेणं णो वज समजिणित्ता हत्थच्छेयणाई' पायच्छेयणाई जाच दोमणस्साई, वीतिवतित्ता सिवमचल जाव चिट्ठति। सकुणी संकु (चंचु) प्पघातं च धेरत रज्जगं तहा । वारिपत्तधरो उचेव, विभागंमि विहाबए ॥ १॥ एवं से :सिद्धे० ॥१८॥ वरिसवणामभायणं ॥१८॥ ||१-२|| ॥ १४ ॥ परिसवज्झ ॥ १५॥ दीप अनुक्रम [१८९१९१] ~ 27~

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