Book Title: Rushibhaashit Sootraaani
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 21
________________ ऋषि भाषित प्रत सूत्रांक [1] गाथा ।। ९-4|| दीप अनुक्रम [१३७ १४३] ११ ॥ ऋषि तेष प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि अध्ययन-[१३], ........मूलं [१] / गाथा [ १-६] 'पुनः संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शितः) ऋषिभाषित-सूत्राणि - मूलं [१३] 'भयालि' अध्ययनं सिद्धि | किम (थ) पत्थि लावणं नाम तेज्जेण ताप मेतेज्जेण भयालिया अरहता इसिणा बुझतं णो हं खलु हो अप्यणो विमायणअभिभवानि से परे अभिभूयमाणे मम अहिताए भविस्सति । भाताणाए सम्बेसिं, गिहिब्रूहण तारए - ॥ तम्स करणं णत्थि णासतो करणं भवे बहुचादि मं सुछु णासतो भवकापणेनेच निमित्तमे परो मे तु पुरेकडं ॥ ३ ॥ मूलसेके कचुप्पत्ती, मूल सारा करो ॥ २२ --------- मुनि दीपरत्नसागरेण --------- बाते इन फलं । फलत्थी सिंचती मुलं फलवाती ण सिंचती ॥ ४ ॥ लुप्पती जस्स जे अस्थि, णासंतं किंचि लुप्पती। संतातो लुप्ती किसान किन लुप्त ॥ ५ ॥ अस्थि मे तेण देति नत्थि मे तेण देव मे । जइ से होडा ण मे देज्जा, णत्थि से तेण देि 1 मे ॥ ६ ॥ ॥ एवं से लिखे ॥ २३ ॥ भयालिनामायण ॥ २३ ॥ ~ 21~ ॐ ॥ १० ॥ १४ वाहुक उमायण'

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