Book Title: Rushabhdev Author(s): Mishrilal Jain Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala View full book textPage 6
________________ युग की श्रेष्ठ सुन्दरी नर्तकी नीलांजनातिलोतमा नृत्य कर रही है। 107 जैन चित्रकथा यह नीलांजना नहीं है, नीलांजना मर चुकी है, किन्तु नीलांजना जैसी लगती है। यह देवराज, इन्द्र का कौशल लगता है। 4 प्रीति मेरी कर लो स्वीकार नहीं है प्रेम कोई व्यापार पता नहीं किस दिन लुट जाए सांसों का व्यापार प्रीति मेरी कर लो स्वीकार, अरे। नीलांजना मर गई। htt Sur जीवन का कोई विश्वास नहीं है, पता नहीं मृत्यु कब आ जाए। ये रिश्ते-जाते सब झूठे है। जो भी मिलता है खोना पड़ता है। मुझे आत्म कल्याण करना चाहिए। सत्य की खोज करनी चाहिए।Page Navigation
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