Book Title: Rushabhdev
Author(s): Mishrilal Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 22
________________ मेरे भीतर परमात्मा है। मैं शुद्ध आल्मा है। जैन चित्रकथा मैया भरता जो मिलता है वही बिछुड़ता है। जिसे पाते हैं उसे रखोना पड़ता है। हरवस्तु परिवर्तनशील है। यह प्रकृतिका नियम है। अब देरन करी,मेशरास्ता छोड़ो। TERMINA oney मुझे अकेला छोड़ चला। चक्रवती का पद भी दान में दे चला, मेरे प्राण भी नहीं लिये। मेरे भैया बाहूबलि महान है। कामदेव होकर भी सन्यासी हो गया। AUTORIA IMPRITERA ऐसी महान कठिन तपस्यादेवी नसुनी। ITESTANTS स्वामीआपने गोम्मटेश्वर बाहुबलि के बारे में सूचना लाने "का आदेश दिया था। Beogo क्या सूचना ला। SHS khap 9/वामी। हिमालय पर्वत की एकचोटी पर भयानक जंगल में एक वर्ष से खड़े-खड़े कायोत्सर्ग मुद्रा में तपस्या कर रहे हैं। .. 20

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