Book Title: Rushabhdev
Author(s): Mishrilal Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala
Catalog link: https://jainqq.org/explore/033237/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्र कथा Gallic ऋषभदेव WRom Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभदेव आज से करोड़ों वर्ष पूर्व एक महान आत्मा अयोध्या नगर में महाराज नाभिराय के राजमहल में माता मरुदेवी की कोख से उत्पन्न हुई जिसका नाम ऋषभदेव रखा गया। जैन मान्यतानुसार वह समय कृषि युग के आरम्भ का था, कृषि करो या ऋषि बनो यह उपदेश सर्वप्रथम आदिनाथ ने दिया था। कल्प वृक्षों (भोग भूमि) की समाप्ति के बाद आपने असि, मसि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य एवं विद्या की शिक्षा दी। आपने अपने पुत्रों को सभी प्रकार की शिक्षा देकर मल्लविद्या, राजनीति, आदि अनेकों प्रकार की कलाएं सिखलाई। ब्राह्मी एवं सुन्दरी अपनी दोनों कन्याओं का अक्षर विद्या, अंक विद्या का ज्ञान कराया तथा इसी समय से अब तक ब्राह्मीलिपि से शिक्षा दी जाती रहीं भगवान् ऋषभदेव ने भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार भिन्न-भिन्न विद्याएं यथायोग्य सिखाई। स्वयं राज्य शासन पर बैठकर निष्कंटक आदर्श राज्य किया। राज्य शासन के सुखमय समय में नीलांजना नाम की अप्सरा की अचानक मृत्यु देखकर विरक्त हो गये। तथा उसी समय अपना राजपद सबसे बड़े पुत्र भरत को सौंप कर दिगम्बरी दीक्षा ले ली। छ: माह तप करने के बाद छह माह तक आहार हेतु यत्र तत्र विहार करते रहे अन्त में हस्तिनापुर मे वैसाख सुदी तीज अक्षय तृतिया को राजा श्रेयांस ने सर्वप्रथम आहार दान दिया। ऋषभदेव संसार के सब पदार्थों, एवं अपनी स्त्री, पुत्र, परिवार यहां तक कि शरीर से भी मोह छोड़ चुके थे, तथा आत्म साधना में लीन हो जाने के बाद उन्होंने कर्मों को नाश किया तथा केवल ज्ञानी हो गये एवं समोशरण में अपनी दिव्यध्वनि के माध्यम से जन जन को कल्याण का मार्ग बताया। अन्त में समस्त कर्मों को नष्ट कर कैलाश पर्वत से कठिन तपश्चर्या करके मोक्ष पद को प्राप्त किया। वे जैन धर्म के प्रथम तीर्थ प्रवर्तक थे। श्रमण संस्कृति का विकास आपके द्वारा शुरू हुआ था तथा आज भी भारत वर्ष में वह परम्परा चल रही है। कथा का यह अंक भगवान आदिनाथ के जीवन पर प्रकाश डालता है जिसके कारण लाखों वर्षों के बाद आज भी वे वन्दनीय बने हुए हैं। सम्पादक ब्र० धर्म चंद शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य शब्दांकन मिश्री लाल जैन एडवोकेट गुना । I.S.B.N 81-858634-01-6 पुष्प नं : 50 मूल्य 20/प्रकाशक आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थमाला जैन मन्दिर, गुलाब वाटिका लोनी रोड़, दिल्ली जिला:- गाजियाबाद फोन 0575--4600074 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ORE समय कभी रुकलानहीं है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। प्राचीन काल में मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति कल्पवृक्ष किया करते थे। कल्पवृक्षों की संख्या बहुत कम हो गई।आदिकाल का मानव दुखी रहने लगा। उस समय अयोध्या में महाराजनाभिरायरॉज्यकरते थे।और भारतवर्ष अजनाभवर्ष कहया स्वामी,हम बहुत दखी हैं। हमें अपना दुरव बताने की आज्ञा दीजिए। काय करते थे। और आरतवर्ष अजलानवर्ष कह भाषभदेव NOMONAL YUDIO IDIOCIO TOTO00000IDIOy YOYCYOYO OYSIOGICIONIT THAN प्रजाजनों में बहुत वृद्ध हो गया हूं। राज्य का संचालन मेरा पुत्र ऋषभदेव करता है, तुम सब उसी के पास जाओ, वही तुम्हारे कष्टों को दूर करेगा। M+ ये कैसी आवाजें आ रही है? क्या मेरे राज्य में प्रजा दुखी है। प्रहरी जाओ और प्रजाजनोंको दरबार में बुलाकर लाओ। I GOOOOOD COF flirtime 'चित्रः बनेसिंह जी.एस.राजावतं, विजय गीताश्री,अक्षरः शरद Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा स्वामी हमारी रक्षाकरो।हम प्रजाजनों। चिन्ता करने की कोई भूखे,प्यासे मरने लगे हैं।कल्प- बातनहीं है। भोग भूमि की आयु समाप्त वृक्ष हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति हो चुकी है। अब कर्म का युग आ गया नहीं करते। पंशुभी हिंसक होउठे है। जो जितना श्रम करेगा उतना सुखी है। जीवन बहुत कठिन रहेगा। जाओ मैं तुम्हारी कठिनाई हो गया है। शीघ्र दूर करूंगा। TOOOOOO ललाट गांव बसने लगे। खेत लहलहाने लगे। Unit Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभदेव अस्त्र-शस्त्र बनने लगे। AL मान व्यापार होने लगा। KINDI MITTIITH क MOD अयोध्यापति सम्राट ऋषभदेव की और से घोषणा की जाती है। जो जितना -श्रम करेगा सुखी रहेगा। आलसी भूखों मरेंगे। प्रजाजन एकदूसरे की सहायता करे।झूठन बोलें,चोरी नकरें,सभी प्रकार कीबुराईयों से दूर रहें। MILAW EDIAMERIma SIC Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युग की श्रेष्ठ सुन्दरी नर्तकी नीलांजनातिलोतमा नृत्य कर रही है। 107 जैन चित्रकथा यह नीलांजना नहीं है, नीलांजना मर चुकी है, किन्तु नीलांजना जैसी लगती है। यह देवराज, इन्द्र का कौशल लगता है। 4 प्रीति मेरी कर लो स्वीकार नहीं है प्रेम कोई व्यापार पता नहीं किस दिन लुट जाए सांसों का व्यापार प्रीति मेरी कर लो स्वीकार, अरे। नीलांजना मर गई। htt Sur जीवन का कोई विश्वास नहीं है, पता नहीं मृत्यु कब आ जाए। ये रिश्ते-जाते सब झूठे है। जो भी मिलता है खोना पड़ता है। मुझे आत्म कल्याण करना चाहिए। सत्य की खोज करनी चाहिए। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभदेव &000 स 1000 100 R SOD मैं अपने ज्योष्ठ पुत्र भरत को अयोध्या का सम्राट घोषित करता है। पोदनपुर का राज्य बाहुबलि को देता हूं। शेष पुत्रों को अलग-अलग प्रदेशका राजा बनाया जाता है। FOLDER Ugg HD naam KODOOT BESH वाला ROCOCICIOS । ऋषभदेव सिद्धार्थ वन जा रहे हैं। THREE E AAL प्रिय प्रजाजनों। में दिगम्बर सन्यासी बनने जा रहा हूं। राज्य से, संसार की किसी भी वस्तु से मेरा कोई सम्बंध नहीं रहा है। एक दूसरे का सहयोग करना, सुख-दुश्व में काम आना। हिंसा,झूठ,चोरी, व्यभिचार, सभी प्रकार की बुराईयों से दूर रहना । संसार में यही सुख का रास्ता है। CO JABARJALANCE FOLLESIJLLE TOOTH Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा मेरे जीवन में वस्त्र,आभूषणआदि का कोई अर्थ नहीं रह गया है। SUP केशलोच श्रमणों के लिए आवश्यक है। मैं शिदों की शरण में हैं मैं शरीरनहीं आत्माहूं। PRODon m TOGe 00 Ebe تا ده - Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभदेव । मैं छः माह तक अन्न-जल छोड़करतपस्या में लीन रहूंगा। OWO Turo स्वामी मेरे घर भोजन >को पधारें। में स्वर्ण मुद्राएं भी भेंट करूंगा।भगवन मेरे घर भोजन करने चले। सन्यासीऋषभदेव नेछः माह से आहारनहीं लिया। ये भूख,प्यास कैसे सहन कर लेते हैं। KIPES TAG AATRO EDIEDEDE TUNE UDIO Vinाय MEDIOD भैया सोमप्रभ। आज अपने नगर में एक महान सन्यासी आने वाले है। उन्हें/ आहार कराना है। बड़े भैया। हस्तिनापुर के राजमहल में किसी प्रकार की कमी नहीं है। भोजन करायेंगे,स्वर्ण भेंट करेंगे। ROOO Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं भैया मेरी बात 'ध्यान से सुनो। आने वाले सन्यासी अयोध्यापति थे। राजपाट त्याग कर सन्यासी हुए हैं। मैं तुम्हें समझाता हूं उस प्रकार उन्हें भोजन को आमंत्रित करना है । अद्भुत सन्यासी आया है। जैन चित्रकथा आप जैसा समझाएं, मैं उसका पालन करूंगा। WO श्रमण ऋषभदेव अंजुलि से गन्ने के रस का आहार ले रहे हैं। 8 सन्यासी ऋषभदेव का हस्तिनापुर में प्रवेश 100000 हे स्वामी नमोस्तु | हे स्वामी नमोस्तु आहारजल शुद्ध हैं। भोजन (शाला में पधारिये। हिमालय पर्वत पर ऋषभदेव साधनारत Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभदेव कैवल-ज्ञान की ज्योति ऋषभदेव भगवान के चारों और फैल गई। Soooo आश्चर्य मेरा सिंहासन कांपरहा है। स्वर्ग लोक में कोई विपत्ति आने वाली है। अशमैं भ्रम में पड़ गया था। ऋषभदेवजी को दुर्लभ केवलज्ञान प्राप्त हआहे। में प्रणाम करता हूँ। श्रमण ऋषमदेव जी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है।जाओ समवशरणप्रवचनस्थलकी रचना करो। प्राणी मात्र के बैठने की सुविधा काध्यान रखना। आदि तीर्थकर ऋषभदेव भगवान की दिव्यध्वनिप्रवचन) इसससार का आदि है औरनअन्त। संसार में आपकी दो ही वस्तुएं सबसे महत्वपूर्ण है जीव और अजीव । आज्ञा का पालन जिनमें देखने,सुनने,समझने की शक्ति हैवह जीव होगा स्वामी। है और इन्हें छोड़कर सब अजीव है। ITEDO 298A RAMM2n. ENNIRMIRPATTRIPATIO Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Spoto स्वामी शुभ सन्देश है। शास्त्रागार में चक्र-रून उत्पन्न हुआ है। आपको पुत्रस्न की प्राप्ति हुई है। ऋषभदेव को केवल ज्ञान प्राप्त हुआहै, वह तीर्थंकर बन गए, भगवान बन गए। कौनसा उत्सव पहले मनाएं। NOOO (OXO केवल-ज्ञान प्राप्त होना अत्यंत -दर्लभ है, प्रथम हम सभी भगवान ऋषभदेव की वन्दना को चलेगे। ca भगवन । आपके दर्शन कर असीम सुख मिला। Army HER प 45ARS MARA PAREnd DYOD Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वामी। आयुधशाला में चक्र-रत्न प्रकट हो चुका है. आदेश दीजिए। ऋषभदेव सेनापति । विश्व विजय करने के लिए तैयारियां करो। शीघ्र ही हम विश्व विजय करने निकलेंगे। सम्राट भरत विशाल सेना के साथ विश्व विजय अभियान पर Looar 5300 paane 11 सभी सैनाएं तैयार है आपके आदेश की, प्रतीक्षा है। जो आज्ञा । फिर विलम्ब क्यों कल सुबह विश्व विजय के लिए निकलेंगे। FLO Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा विश्व विजय की यात्रा पूरी हुई। सेनाओं को अयोध्या राजधानी लौटने के आदेशदो। स्वामी आपकी कीर्ति, पराक्रम और सैन्यदलकी विशालता देखकर सभी ने आधीनता स्वीकार कर ली है।। काला COO Manawonly OTO KO स्वामी। यह वृषभाचल पर्वत है विश्व विजय के पश्चात प्रत्येक चक्रवती पर्वल पर विजय पटिका पर अपमानाम अंकित करता है। तुम्हारी सलाह उचित है। मुझे वृषभाचल पर्वत की पट्टिका पर अपना नाम अंकित करना चाहिए। अरे। इस विजय पट्रिका पर तोनाम लिखने का भी स्थान नहीं। मेरा भ्रम था,मैं सोचता था मैं प्रथम चक्रवर्ती हूं। किन्तु कोटि-कोटि वर्ष पुरानी धरती पर अनेक चक्र वर्ती हो चुके हैं। ANAAAAM 5000 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं किसी पूर्व चक्रवर्ती सम्राट का नाम मिटाकर अपना नाम लिख रहा हूँ। मेरा चक्रवती होने का गर्व मिथ्या है। DO AURAMINUTE ऋषभदेव स्वामी। चक्ररत्न शास्त्रागारमें प्रवेशनहीं सभी करता। राजाओं ने हमारी आधीनता स्वीकार कर ली।क्या कोई राज्यजीतना शेष है। STORI0.00 CO.PG F©®©© CE 10) OOO NAAAAA ANAM MivoHD Solec OTora MAMANHAIRS MININTINRHMA INITION AMIRICITIANTOSHOOL सम्राटासमीने आपकी आधीनता स्वीकार कर ली किन्तु आपके छोटे भाई पौढ़नपुरके सम्राट बाहुबलि आपको नमस्कार करने नहीं आए। सम्राट बाहबलि की जय हाँआपके. बड़े भैया भरत विश्व विजय कर लौट आए हैं आपको याद किया है। DO 2006 तब कोई चिन्ता की बात नहीं गोम्मटेश्वरबाहुबलि मेरा सबसे सुन्दर और स्वाभिमानी प्यारा भाई है। उसे सन्देश भेज दो, सन्देश पाते ही आ जाएगा। 13 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भैया भरत को प्रणाम करताहूँ। विश्व विजय में कोई संकट तोनहीं आया जैन चित्रकथा विश्व विजय का अभियान सफल रहा किन्तु स्वामी। DO OCOM किन्तु क्या ? सम्राट विश्व विजय का अभियान अभी पूरा नहीं हुआ, अभी आपने सम्राट भरत की आधीनता स्वीकार नहीं की है। पिताश्री भगवान ऋषभदेव ने "भरत को अयोध्या और मुझे पौदनपुरका सम्राट घोषित किया था, राजदेते समय पिताश्री ने कहा था, परतंत्रता सबसे बुरी और, कष्टदायक होती है। हम आधीनता स्वीकारनहीं करेंगे। HOOTOO O(Plalaa UNTI महाराजा तब विशालचतुरंगनी सेना से युद्ध करना होगा। युट्ट से डरता कौन है। जाओ भैया भरत को नमस्कार कहना किन्तु सम्राट के रूप मेंन मैं उन्हें नमस्कार करूंगोऔर न आधीनता स्वीकार करूंगा। 14 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभदेव कहा था स्वामी पर बाहुबलिन युद्ध से डरते हैं और न मृत्युसे। ७०.०.O सम्राट। तुमने कहानहीं कि बाहुबलि आपको चक्रवर्ती की विशाल बहुत प्यार और सेना से युद्ध करना सम्मान करते हैं। बुढ़िमानीनहीं। किन्तु उन्होंने आपकी आधीजला स्वीकार करना अस्वीकार कर दिया। - Q000 POOOOOOO बड़ी कठिन समस्या है, अब क्या करना चाहिए? मैं अपने छोटे भाई से युद्धनहीं करना चाहता,मुझेचक्रवर्ती पद नहीं चाहिए। नहीं स्वामी अपने निर्णय पर फिर से विचार कीजिए। यह चक्ररत्न का अपमान होगा। बाहुबलि ने आपकी आधीनता स्वीकारनकरके आपका अपमान किया है। AR oad O05.00 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा सेनापति। तुमठीक कहते हो। बाहुबलि ने मेरा अपना किया है। मुझे विश्वास है विशाल सेना देखकर उसका घमण्ड चूर-चूर हो जाएगा। रा अपनीमार्गशिप तो पोदनपुर पर आक्रमण करने की अनुमति प्रदान करे। गाज प00000000 आज्ञा नहीं क्या कोई संधि का प्रस्ताव आया स्वामी। Widin Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस युद्ध लाखों सैनिक मारे जाएँगे और दोनों राजा सुरक्षित दोनों राजाओं ने हमारी बात मान ली। दोनों राजा भी युद्ध नहीं चाहते । Q बाहुबलि की जय | कोई उपाय सोचो। ऋषभदेव Doo बाहुबलि की जय। Winer Inv 17 20 चक्रवर्ती सम्राट भरत और बाहुबलि दृष्टियुद्ध, जल यह और मल्लयुद्ध (कुस्ती) लई जो भी जीते उसे विजेता समझा जाए। आश्चर्य! सम्राट भरत दृष्टि युद्ध में हार गए। 6 युद्ध P 9 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा बड़ा कठिन मल्लयुद्ध है।कहना मुश्किल है कौन जीतेगा? भरतको इतनी तेजी से भूमि परपटकू किइसके प्राणपखेरू उड़ जाए। में भरत के प्राण लेकर स्वयं को और अपने वंश को कलंकित नहीं करना चाहता। 100 यह मैं क्या करने जा रहा हूं। सम्राट भरत मेरे बड़े भाई है।लोग क्या कहेंगे कि आदि तीर्थंकर ऋषभदेव राज्य छोड़कर चले गए और उनके पुत्र उसी भूमि के लिए लड़ रहेहैं एकदसरेके प्राण लेने को उतारू है। चक्ररत्न आओ। बाहुबलि काशीश काटडालो। यह जीवित नरहने पाए। ND ) (O चक्ररत्न चक्रवर्ती के वंश पर प्रहार नहीं करता। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभदेव यह संसार कितना स्वार्थी है।यहां सम्पत्तिके लिए भाई-भाई के प्राण लेना चाहता है। महान वंश को कलंकित करना चाहता है। धिक्कार है ऐसे संसार को। मैं भी उसी मार्ग पर जाऊंगा जिस पर भगवान ऋषभदेव गए हैं। मैं सम्पूर्ण इच्छाओं को छोड़ रहा हूँ। वस्त्र,आभूषण क्या इस संसार को भी। भैया क्षमा करो। भैया क्षमा करो। चक्रवर्ती पढ़ के अभिमान ने मेरी बुद्धि खराब करदी थी।सकजाओ। 000000000 GOOOO. नहीं भेया। मैनें संसार का दृश्य देख लिया है।मैं दिगम्बर सनयांसी होने का संकल्प ले चुका है। अब शत्रु,मित्र दोनों मुझे समान है। मेरा कोई नहीं है,मैं किसी का भी नहीं हूं। मुझे अकेळे यात्रा करना है। नहीं भैया। पिताश्री ऋषभदेव ने सन्यास ले लिया मेरे निन्यानवे भाई भी सन्यासी हो गए। तुम भी छोड़कर जा रहेहो। मैं अकेला रह जाऊंगा। AAVA OXOXOXOXO 19 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेरे भीतर परमात्मा है। मैं शुद्ध आल्मा है। जैन चित्रकथा मैया भरता जो मिलता है वही बिछुड़ता है। जिसे पाते हैं उसे रखोना पड़ता है। हरवस्तु परिवर्तनशील है। यह प्रकृतिका नियम है। अब देरन करी,मेशरास्ता छोड़ो। TERMINA oney मुझे अकेला छोड़ चला। चक्रवती का पद भी दान में दे चला, मेरे प्राण भी नहीं लिये। मेरे भैया बाहूबलि महान है। कामदेव होकर भी सन्यासी हो गया। AUTORIA IMPRITERA ऐसी महान कठिन तपस्यादेवी नसुनी। ITESTANTS स्वामीआपने गोम्मटेश्वर बाहुबलि के बारे में सूचना लाने "का आदेश दिया था। Beogo क्या सूचना ला। SHS khap 9/वामी। हिमालय पर्वत की एकचोटी पर भयानक जंगल में एक वर्ष से खड़े-खड़े कायोत्सर्ग मुद्रा में तपस्या कर रहे हैं। .. 20 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शरीर पर बेलें बढ़ गई है। सांपों ने पावों के पास बांबियां बना ली है। उनके शरीर पर सांप चढते उतरते देखे जा सकते हैं। उनके दर्शनों का मेला सा लगा रहता है। MUDRASHTAMI www!! ऋषभदेव | मैं जाओ दूत ! तुम्हारी सूचना से सन्तुष्ट हूँ। क्या कारण है बाहुबलि मुनि को पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं हो रहा। इतनी महान साधना के बाद केवलज्ञान प्राप्त न होने का कारण समझ में नहीं आता भगवानमदेव जी से पूछना चाहिए। भाग्यशाली प्राणियों। तुम कर्म भूमि के प्राणी हो। कर्म भूमि में सुखी रहने का एक मात्र साधने है भाईचारा मनुष्य सब समान है छोटा काम करने से कोई छोटा नहीं हो जाता। जंगल भी बहुत उपकारी है। प्राणी मात्र को मारना पाप है। छोटेछोटे प्राणियों का भी महत्व है, ये प्रकृति का सन्तुलन बनाएं रखते हैं। हिंसा से बचो, परोपकार करो, अपनी आत्मा को पहिचानो । 21 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभु आपकी जय हो। सन्यासी बाहुबलि बहुत कठोर तपस्या कर रहे हैं किन्तु उन्हें केवलज्ञान प्राप्त नहीं हो रहा है। इसका क्या कारण हैं? जैन चित्रकथा हे भव्य सन्यासी बाहुबलि की आत्मसाधना के बीच एक विचार आ जाता है कि वह तेरी राज भूमि पर खड़ा तपस्या कर रहा है। जाओ उस महान तपस्वी के चरणों में जाओ। हे स्वामी। चक्रवर्ती सम्राट आपके श्री चरणों में प्रणाम करता है। यह पृथ्वी मेरे जन्म के पहले भी थी और मेरे बाद में भी रहेगी। पृथ्वी किसी की भी नहीं है, यह प्रकृति की देन है। 22 बाहुबलि को केवलज्ञान प्राप्त हो गया। Bra Kaheliy निरन्तर साधना से मुक्ति का द्वार खुलता है। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभदेव श्रमण बाइबलि जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होगरतीर्थकंर संसार के कल्याण के लिए विहार करते हैं। withili मात्र आत्मतत्व हूं। पादेह अदृश्य हो गई महान उपकारक,प्रजापति, मनु,शंकर,तीर्थकरहमें छोड़करचळेगए। नस्नारियों, यह रोने का समय नहीं है।ऋषभदेव भगवान मुक्त होग) उन्हें निर्वाण प्राप्त हो गया। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्रकथा भरत यह रोने का,मोहग्रस्त होने का समयनहीं है। निर्वाण महोत्सव मनाओ। P ODEOX जय ऋषभदेव तीर्थंकर आदि ब्रह्मा,तुम आदि देव तुम मनु, तुम ही तीर्थंकर जय ऋषभदेव तीर्थंकर DOOS प्रजा सुखी है,राज्य में शांति है। पुत्र अर्ककीर्ति राज भार संभालने योग्य है। मुझे भी आत्म कल्याण के लिए सन्यासी बनना चाहिए। रामा के रूप में मैं अपना कर्तव्य पूरा कर चुका। IASY आदि तीर्थंकर ऋषभदेव मेरी साधना को सफल बनावे । सबाट ऋषभदेव, कामदेव बाइबलि, चक्रवर्ती सम्राट भरत का यह संसार सदेव ऋणी रहेगा। आदिकाल के इन तीन रनों के चरणों में कोटि नमन । 24 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनाचार्यों द्वारा लिखित सत्य कथाओं पर आधारित । जैन चित्र कथा आठ वर्ष से ८० वर्ष तक के बालकों के लिए ज्ञान वर्धक, धर्म, संस्कृति एवं इतिहास की जानकारी देने वाली स्वस्थ, सुन्दर, सुरुचिवर्धक, मनोरंजन से परिपूर्ण आगम कथाओं पर आधारित जैन साहित्य प्रकाशन में एक नये युग का प्रारम्भ करने बाली एक मात्र पत्रिका जैन चित्र कथा ज्ञान का विकाश करने वाली ज्ञानवर्धक, शिक्षाप्रद और चरित्र निर्माणकारी सरल एवं लोकप्रिय सचित्र कथा जो बालक वृद्ध आदि सभी के लिए उपयोगी अनमोल रत्नों का खजाना, जैन चित्र कथा को आप स्वयं |पढे तथा दूसरों को भी पढ़ावे। विशेष जानकारी के लिए सम्पर्क करें। आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थ माला संचालक एवं सम्पादक-धर्मचंद शास्त्री श्री दिगम्बर जैन मंदिर, गुलाब वाटिका लोनी रोड, जि० गाजियाबाद Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपस्वी चारित्र शिरोमणी 108 आचार्य धर्मसागरजी श्री आचार्य धर्मसागर जी महाराज ____सौजन्य स्वर्गीय श्री सेवती देवी जैन धर्मपत्नी स्व. श्री जयगोपाल जैन राजीव जैन कागजी चावड़ी बाजार, दिल्ली मुद्रक : शिवा आर्ट प्रैस एम-112 नवीन शाहदरा दिल्ली - 110032