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जैन चित्रकथा स्वामी हमारी रक्षाकरो।हम प्रजाजनों। चिन्ता करने की कोई भूखे,प्यासे मरने लगे हैं।कल्प- बातनहीं है। भोग भूमि की आयु समाप्त वृक्ष हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति हो चुकी है। अब कर्म का युग आ गया नहीं करते। पंशुभी हिंसक होउठे है। जो जितना श्रम करेगा उतना सुखी है। जीवन बहुत कठिन रहेगा। जाओ मैं तुम्हारी कठिनाई हो गया है।
शीघ्र दूर करूंगा।
TOOOOOO
ललाट
गांव बसने लगे।
खेत लहलहाने लगे।
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